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________________ ५६ पञ्चतन्त्र मौत मिलेगी । उसके मरने पर सब लोग कहेंगे कि बहुत से क्षत्रियों ने मिलकर वासुदेव और गरुड़ को मार डाला । इसके बाद लोग हमारीतुम्हारी पूजा न करेंगे । इसलिए तू जल्दी से लकड़ी के गरुड़ में घुस जा। मैं भी बुनकर के शरीर में प्रवेश करता हूँ जिससे वह शत्रुओं का नाश करेगा । पीछे शत्रुओं का बध करने से हमारा माहात्म्य बढ़ेगा ।" गरुड़ ने 'ऐसा ही हो' कहकर भगवान् की आज्ञा मान ली । इसके बाद भगवान् नारायण ने बुनकर के शरीर में प्रवेश किया। पीछे आकाश में स्थित तथा शंख, चक्र, गदा और धनुष से युक्त उस बुनकर ने भगवान् की कृपा से क्षण-भर में ही सब क्षत्रियों को निस्तेज बना दिया । बाद में सेना से घिरे हुए राजा ने सब शत्रुओं को हराकर उन्हें मार डाला । लोगों में यह प्रवाद चल निकला कि उस राजा ने अपने दामाद विष्णु के प्रभाव से सब क्षत्रियों को मार डाला है । उन क्षत्रियों को मरा देखकर प्रसन्न चित्त बुनकर को आकाश से नीचे उतरते हुए राजा, आमात्य और नागरिकों ने नगरवासी बुनकर के रूप में देखा, और पूछा कि "यह क्या ” उसने भी शुरू से लेकर पहले का सब हाल-चाल कहा । बाद में बुनकर के साहस से प्रसन्न तथा शत्रुओं के वध से प्रतापवान् राजा ने सब लोगों के सामने बुनकर को राज- कन्या विवाहविधि से दे दी और कुछ देश भी दे दिया । बुनकर भी राज कन्या के साथ मनुष्य-लोक में सारभूत पाँच प्रकार के विषय - सुखों का अनुभव करता हुआ समय बिताने लगा । इसलिए कहने में आता है कि अच्छी पार ब्रह्मा भी नहीं पा सकते । बुनकर ने राज- कन्या का उपभोग किया ।" रीति से नियोजित दंभ का विष्णु का रूप धारण करके यह सुनकर करटक ने कहा, "यह ठीक है, पर मुझे इस बात का बड़ा डर है कि संजीव बुद्धिमान है और सिंह भयंकर है । यद्यपि तुझमें बुद्धि की तीव्रता है फिर भी तू पिंगलक से संजीवक को अलग करने में असमर्थ है ।" दमनक ने कहा, “भाई ! मैं असमर्थ होते हुए भी समर्थ ही हूँ ।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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