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________________ पञ्चतन्त्र देर के बाद मुश्किल से उसे होश आया। इसके बाद रथकार ने उससे पूछा, "मित्र ! तुम एकाएक किसलिए बेहोश हो गए ? तुम अपने मन की बात मुझसे कहो।" बुनकर बोला, "मित्र ! अगर ऐसी बात है तो मेरा भेद सुन और मेरी सब तकलीफों को जान । अगर तू मुझे अपना मित्र मानता हो, तो तू मुझे लकड़ी देकर (चिता बनाकर ) मेरे ऊपर कृपा कर । यदि प्रेम के वेग से मैंने कुछ अनुचित बात भी की हो तो तू मुझे क्षमा कर।" यह सुनकर आँसुओं से डबडबाई आँखों वाले रथकार ने भर्राई आवाज से कहा, "अपने दुःख का कारण मुझसे कह, जिससे अगर वह दूर हो सकता हो तो उसकी कोशिश की जाय । कहा भी है-- ___ "इस संसार में कोई भी बात दवा , धन और अच्छी सलाह तथा बड़ों की बद्धि से असाध्य नहीं है। इन चारों उपायों से यदि काम सधता होगा तो मैं साधूंगा।" बुनकर ने कहा , “मित्र, इन साधनों से तथा दूसरे हजारों उपायों से भी मेरा दुःख असाध्य है । इसलिए मेरे मारने में अब तू देरी मत कर।" रथकार बोला, "मित्र! यदि तेरा दुःख असाध्य भी है तो मुझे बतला, जिससे मैं उसे असाध्य जानकर तेरे साथ अग्नि में प्रवेश करूँ, क्योंकि तुझसे एक क्षण का भी वियोग में सह न सकूगा, यह मेरा निश्चय है।" बुनकर ने कहा ,"मित्र ! हाथी पर चढ़ी उस उत्सव में जिस राज-कन्या को मैंने देखा, उसके देखने के बाद ही काम ने मेरी यह अवस्था कर डाली । मैं अब इस पीड़ा को नहीं सह सकता । कहा भी है-- "मतवाले हाथी के कुंभों के समान आकार वाले, केसर से गीले उसके स्तनों पर रति खेल से खिन्न होकर , वक्षस्थल पर बाहुओं के बीच में उसे लेकर उसके साथ किस क्षण सो सकूँगा ? "उसके बिंबा के समान लाल अधर हैं , कलश के समान उसके स्तन-युगल हैं, चढ़ती हुई जवानी का उसे अभिमान है, उसकी नीची नाभि है, स्वभाव से ही धुंघराली अलकें हैं तथा पतली कमर है । इन सब बातों के सोचने से मेरे मन में खेद होता है , उसके दोनों स्वच्छ
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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