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________________ पञ्चतन्त्र उसके देखने के पहले ही मैं अपने घर पहुँच जाऊँ।" यह सब होने के बाद बुनकर ने पुनः उठकर कहा, “छिनाल, अब भी क्यों नहीं बोलती ! क्या मैं फिर इससे भी कठोर कान काटने की सजा तुझे दूं?" गुस्से और झिड़की के साथ उसकी स्त्री ने जवाब दिया, "अरे महामूर्ख, तुझे धिक्कार है । मुझजैसी महासती के अंग काटने वाला और उसे ताने मारने वाला कौन समर्थ है ? इसलिए हे सब लोकपालो सुनो ! . : "सूर्य, चन्द्र, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी, जल, हृदय, यम, रात्रि, दिवस, दोनों संध्याएं (सवेरा और संध्या) तथा धर्म, ये सब मनुष्य का आचरण जानते हैं। इसलिए अगर मेरा सतीत्व है , और मन से भी मैंने दूसरे आदमी की इच्छा नहीं की है तो देवगण पुनः मेरी नाक को पहले की तरह सुन्दर और पूरा बना दें। पर यदि मेरे चित्त में पर-पुरुष का झूठा खयाल भी है तो वे मुझे जला डालें।"यह कहकर वह फिर उससे बोली, “ओ पापी,देख मेरे सतीत्व के प्रभाव से मेरी नाक पहले-जैसी ही हो गई है।" इस पर बुनकर ने लुआठी की रोशनी में उसकी ज्यों-की-त्यों नाक और जमीन पर गहरा खून बहते देखा । बड़े अचंभे में पड़कर उसने उसका बंधन खोलकर उसे खाट पर लिटाकर खुशामद की बातों से उसकी मिन्नत की। देवशर्मा ने भी यह सब हाल देखकर विस्मित मन से कहा -- .. "शंबरासुर की जो माया है, नमुचि की जो माया है, तथा बलि और कुंभीनसि की जो माया है , वह सब माया स्त्रियाँ जानती हैं। .. : .. "स्त्रियाँ हँसते पुरुष के साथ समय देखकर हँसती हैं, रोने वाले के साथ रोती हैं, तथा अप्रिय को मीठी बातों से वश में करती हैं। ''शुक्राचार्य जो शास्त्र जानते हैं और बृहस्पति जो शास्त्र जानते हैं, ये शास्त्र स्त्री-बुद्धि से बढ़कर नहीं हैं। इसलिए ऐसी स्त्रियों की किस तरह रक्षा करनी चाहिए? . . . . . __“जो स्त्रियाँ झूठ को सच और सच को झठ कहती हैं उनकी इस :
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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