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________________ نئے मित्र-भेद वह चला गया। वह छिनाल औरत परिव्राजक को साथ लेकर हँसती हुई अपने प्रेमी देवदत्त का विचार करती हुई घर की ओर चली । अथवा ठीक ही कहा है --- ''बादल से घिरे बरसात के दिन में, घने अन्धकार में, मुश्किल से घुसने लायक शहर की गलियों में, पति के विदेश जाने पर, छिनाल स्त्री को बड़ा सुख मिलता है। और भी। “चोरी-चोरी छिनाले में मस्त स्त्रियाँ पलंग पर बिछी चादर, अनुकूल पति और मीठी नींद को तिनके की तरह छोटा मानती हैं। उसी प्रकार " (अपने पति के साथ) क्रीड़ा व्यभिचारिणी स्त्री की चरबी जला डालती है , पति का शृगार उसकी हड्डियां जला डालता है, पति की मीठी बातें उसे कड़वी लगती हैं; छिनाल को पति से जरा भी संतोष नहीं मिलता। "दूसरे पुरुषों में हमशा आसक्त कुलटा उसी क्षण से कुल का विनाश, लोकनिंदा, बंधन और मरने का डर स्वीकार कर लेती है।" - बुनकर की स्त्री ने घर पहुँचकर देवशर्मा को बिना बिछावन की. टूटी खाट देकर कहा, “ भगवन्, दूसरे गाँव से आई अपनी सखी से जल्दी मिलकर जब तक मैं आती हूँ तब तक आप होशियारी से घर में रहियेगा।" यह कहकर सिंगार-पटार के बाद जब तक वह देवदत्त की तरफ जाय, तब तक सामने से उसने नशे में मस्त, मुक्त-केश, और कदम-कदम पर लड़खड़ाते हुए , हाथ में शराब का बरतन लिये हुए अपने पति को आते देखा। उसे देखकर वह जल्दी से फिरकर अपने घर में घुसे गई और सिंगारपटार उतारकर पहले जैसी बन गई । बुनकर ने भी उसे सिंगार किए हुए भागते देखा । पहले से ही उसका दिल कानों-कान उसकी निंदा सुनकर क्षुभित होता रहता था, पर वह हमेशा अपने मनोभावों को छिपाए रखता था। पर उस समय अपनी स्त्री का व्यवहार देखकर उसे निश्चय
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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