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________________ ४० पञ्चतन्त्र है, अगर कहीं वह दोनों मेढ़ों की झपेट में आ गया तो मैं समझता हूँ कि वह अवश्य मारा जायगा।" इसी बीच में लहू का स्वाद लेने के लालच में वह सियार दोनों के बीच में जा घुसा और उन दोनों की टक्कर में पड़कर मर गया। देवशर्मा उसी बात का विचार करते हुए और अपनी थैली की ओर ध्यान लगाए आगे बढ़ा। जब उसने आषाढ़भूति को नहीं देखा तो जल्दी से हाथ-पैर धोकर उसने अपनी कथरी टटोली, पर उसमें थैली नहीं मिली। इस पर वह हाय मैं तो लुट गया, यह चिल्लाता हुआ बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। कुछ देर बाद होश आने पर फिर वह रोने चिल्लाने लगा, "अरे आषाढ़भूति ! मुझे ठगकर तू कहाँ भाग गया ? मेरी बात का जवाब दे।” इस तरह अनेक प्रकार से रोने-कलपने के बाद आषाढ़भूति के पैरों के निशानों का पीछा करता हुआ वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा। इस तरह चलते हुए संध्या समय वह किसी गाँव में आ पहुँचा।।। इसी बीच में उस गाँव से कोई बुनकर अपनी पत्नी के साथ पास के नगर में शराब पीने के लिए जा रहा था । उसे देखकर देवशर्मा ने कहा, “भद्र ! मैं सूरज डूबने के समय तेरे पास अतिथि होकर आया हूँ। मैं इस गांव में किसी दूसरे को नहीं जानता, इसलिए तू अतिथि-धर्म का पालन कर । कहा भी है कि. "जो अतिथि सायंकाल में सूर्यास्त होने के साथ-ही-साथ गृहस्थों के घर आ पहुँचा हो उसका सत्कार करने से गृहस्थ देवत्व पाते हैं। और भी। "घास, ( सोने-बैठने की ) जगह, पानी, और चौथी सच्ची बात, इतनी वस्तुएं सत्पुरुषों के घरों से कभी विलग नहीं होती। अतिथि के स्वागत से अग्नि, उसे आसन देने से इन्द्र, उसके पैर धोने से पितर, और उसे अर्घ्य देने से शंकर प्रसन्न होते हैं।" .. वुनकर ने यह सुनकर अपनी स्त्री से कहा, "प्रिये ! तू मेहमान को लेकर घर की ओर जा। पैर धुलाने , भोजन कराने और सुलाने से अतिथिमेवा करके तू वहीं रहना,मैं तेरे लिए बहुत-सी शराब लाऊँगा।" यह कहकर
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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