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________________ पञ्चतंत्र राजा, सांप के अर्थ में केंचुली से युक्त ) क्रूर, अत्यन्त दुष्ट और मंत्र-साध्य (राजा के अर्थ में छिपी मंत्रणा और सांप के अर्थ में सांप साधने का मंत्र ) होता है। "राजा सों की तरह दो जीभ वाले, क्रूर-कर्मी, अनिष्ट करने वाले, दूसरों का दोष देखने वाले और दूर से देखने वाले होते हैं। "राजा हमें चाहता है इसलिए जो किसी का थोड़ा भी बुरा करते हैं वे पापी आग में पतिंगों की तरह जल जाते हैं। "सब लोगों से पूजित राजपद दुरारोह होता है। थोड़े-से अपकार से भी वह ब्रह्मतेज की तरह दुःख देता है। "राजलक्ष्मी मुश्किल से प्रसन्न और मुश्किल से मिल सकने वाली होती है, लेकिन एक बार भेंट होने पर जिस तरह जलाशय में जल रहता है उसी तरह वह बहुत समय तक टिकी रहती है।" दमनक ने कहा , “बात ठीक है, किंतु "जिस-जिस मनुष्य का जैसा-जैसा भाव रहता है उस-उस मनुष्य से उसी भांति मिलकर चतुर उसे अपने वश में करता है । "अपने स्वामी के विचार के अनुसार काम करना, यह सेवक का सब से अच्छा धर्म है। स्वामी की इच्छानुसार नित्य चलने वाला सेवक राक्षसों को भी वश में कर लेता है। "क्रोधित राजा की तारीफ,. उसके चाहने में चाह , उसके द्वेष में द्वेष , और उसके दान की प्रशंसा, ये चीजें बिना तंत्र-मंत्र के भी वशीकरण के साधन हैं।" करटक ने कहा , “अगर तेरी यही मंशा है तो तेरा रास्ता सुखकर हो । तू अपनी इच्छानुसार काम कर .।" .. दमनक करटक को प्रणाम करके पिंगलक की तरफ चला। उसे आते देखकर पिंगलक ने द्वारपाल से कहा , “अपनी छड़ी दूर हटाओ और मेरे पुराने मित्र मंत्रि-पुत्र दमनक को बिना किसी रोक-टोक के आने दो। वह मेरे द्वितीय मंडल में बैठनेवाला और यथार्थवादी है।" द्वारपाल ने कहा, "जैसी
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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