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________________ રદ लब्धप्रणाश मैं आपका रखवारा हूं, यहां ठहरकर आपके लिए इस हाथी की रक्षा कर रहा हूं, इसलिए मालिक आप इसे खाइये ।" उसे नमते देखकर सिंह ने कहा , “अरे! दूसरे से मारा गया शिकार में कभी नहीं खाता। कहा है कि "दुःखों से घिरकर भी कुलीन नीति का रास्ता नहीं लांघते; जैसे वन में पशुओं का मांस खाने वाले सिंह भूखे रहने पर भी घास नहीं चरते। इसलिए मैंने यह मरा हाथी तुझे बख्श दिया।" यह सुनकर सियार ने खुशी-खुशी कहा, “मालिकों को नौकरों से ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए। कहा भी है कि "अन्तिम अवस्था आ जाने पर भी शुद्धता के वश होकर मालिक अपने गुण नहीं छोड़ता । शंख आग में जलकर भी बाहर निकले फिर भी उसकी सफेदी नहीं जाती।" सिंह के जाने पर एक बाघ आया। उसे भी देखकर सियार ने सोचा, "अरे! उस बदमाश को तो मैंने खुशामद करके टाला फिर इसको कैसे टालूं? यह बलवान है इसलिए विना कपट के यह सीधा नहीं जा सकता। कहा भी है "जहां साम और दाम का प्रयोग न हो सके वहां कपट करना चाहिए, क्योंकि वह लोगों को वश में ला सकता है। सव गुणों से भरे-पूरे रहने पर भी मनुष्य कपट से बँध जाता है। कहा है कि "स्वच्छ, अविरुद्ध, गोल तथा अत्यन्त सुन्दर होने पर भी मोती भीतर से भेदा जाकर बिंध जाता है।" इस तरह सोचकर बाघ के सामने जाकर अभिमान से कंधों को ऊंचा करके सियार ने जल्दी से कहा, "मामा,आप क्यों मौत के मुंह में घुस आए ? इस हाथी को सिंह ने मारा है । मुझे इसकी रखवाली करने में लगाकर वह नदी में नहाने गया है । जाते-जाते उसने मुझे हुक्म दिया है, यदि कोई आवे तो चुपके-चुपके मुझे उसकी खबर देना, जिससे मैं यह जंगल बिना बाघ का कर दूं। इसके पहले एक बाघ ने मुझसे मारे गए एक हाथी को खाकर जूठा कर दिया था, उस दिन से मैं बाघों के प्रति बहुत नाराज हूं।"यह सुनकर
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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