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________________ मित्र-भेद वंश में अधिक चमक पैदा करता है। इसी प्रकार "नदी के तीर उगते हुए उस तृण का जन्म सफल है कि जो पानी में डूबते हुए व्याकुल मनुष्य के हाथ का सहारा बनता है। और भी "धीरे-धीरे ऊपर जाने वाले और लोगों का दुःख हटाने वाले सज्जन पुरुष संसार में कम होते हैं। "पंडित लोग इसलिए माता के पैर को सब से अधिक मानते हैं क्योंकि वह ऐसे किसी गर्भ को धारण करती है जो जन्म लेकर बड़ों का भी गुरु होता है। "जिस पुरुष की शक्ति प्रकट न हुई हो ऐसा शक्तिशाली मनुष्य भी तिरस्कार पाता है; लकड़ी में छिपी हुई अग्नि को तो लांघा जाता है पर जलती हुई को छू नहीं सकता।" करटक ने कहा , “मैं और तुम प्रधान पदवी पर तो हैं नहीं, तो फिर हमें इस झंझट से क्या काम ? कहा भी है-- "मामूली ओहदे पर रहने वाला जो मूर्ख राजा के सामने बगैर पूछे बोलता है वह केवल असम्मान ही नहीं तिरस्कार का भी पात्र होता है। और भी "अपनी वाणी का वहीं प्रयोग करना चाहिए जहां उसके कहने से फल मिले, जैसे कि रंग सफेद कपड़े पर ही खूब पक्का बैठता है।" दमनक ने कहा, “ऐसा मत कह, "अगर मामूली आदमी भी राजा की सेवा करे तो प्रधान बन जाता है और प्रधान भी यदि सेवा छोड़ दे तो छोटा हो जाता है । चयोंकि कहा भी है "राजा अपने पास रहने वाले का ही मान करता है, फिर भले ही वह विद्याहीन , अकुलीन और असंस्कृत क्यों न हो। प्रायः राजा, स्त्रियां और लताएं जो पास में होता है, उसी का सहारा लेती हैं।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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