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________________ १० पञ्चतंत्र हुआ आहार तो अपने पास रहता ही है फिर इस खोद गिनोद से क्या मतलब ?" दमनक ने कहा, "तो क्या तुम केवल भोजन मात्र की ही इच्छा रखते हो ? यह ठीक नहीं । कहा भी है- " बुद्धिमान पुरुष मित्रों पर उपकार करने के लिए अथवा दुश्मनों का अपकार करने के लिए राजाश्रय चाहता है । केवल पेट तो कौन नहीं भरता ? और भी “जिसके जीने से बहुत से जीते हैं वही इस जगत में जीवित कहलाता है, बाकी तो क्या पक्षी भी चोंच से अपना पेट नहीं भर लेते ? “ विज्ञान, शौर्य, वैभव तथा आर्यगुणों के साथ प्रसिद्ध होकर मनुष्य अगर एक क्षण मात्र भी जीवित रहे तो उसे इस लोक में ज्ञानी पुरुष जीवित कहते हैं । यों तो कौआ भी बहुत दिनों तक जीता है और बलि खाता रहता है । "जो अपने सेवकों, दूसरों, व बन्धु-वर्ग पर और दीनों पर दया नहीं करता उसका मनुष्य-लोक में जीने का क्या फल है ? यों तो कौआ भी बहुत दिनों तक जीता रहता है और बलि खाता है । "छोटी नदी जल्दी से भर जाती है, मूसे की बिल भी जल्दी से भर जाती है तथा सत् पुरुष संतोषी भी थोड़ी-सी वस्तु में प्रसन्न हो जाता है । और भी "जो अपने वंश की चोटी में झण्डे की तरह ऊपर चढ़ा नहीं रहता, माता का केवल यौवन हरण करने वाले ऐसे मनुष्य के जन्म से क्या लाभ ? और भी "इस परिवर्तनशील संसार में कौन मरता नहीं और कौन पैदा नहीं होता ? पर सच्चे अर्थ में जन्मा वही गिना जाता है जो अपने
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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