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________________ -२२२ पञ्चतन्त्र "पुण्य करने वालों का जलती आग में गिरना श्रेयस्कर है, पर एक क्षण भी दुश्मन का साथ ठीक नहीं ।" यह सुनकर स्थिरजीवी ने कहा, "भविष्य के फल के लोभ से सेवक कष्टों की परवाह नहीं करता । कहा भी है " भयभीतों को जो-जो रास्ता हितकर होता है, उस-उस रास्ते पर भयंकर होते हुए भी अपनी निपुण बुद्धि के अनुसार चलना चाहिए | हाथी की सूंड़ की तरह, धनुष की डोरी के निशान से अंकित, बड़े कामों में चतुर कुशल हाथों में किरीटी ने स्त्रियों के समान कंगन बांधे । ― "" 'विद्वान् मनुष्य को सशक्त होने पर भी आगामी की राह देखते हुए वज्रपात के समान विषम, नीच और पापी जनों के बीच रहना चाहिए । बड़े बलवान भीम ने भी हाथ में कडछुल पकड - कर, धुएँ से गंदे होकर मेहनत से क्या मत्स्यराज के घर में रसोइये की तरह रसोई नहीं बनाई थी ? " समय जानने वाले विद्वान् को जब-तब दुःख पड़ने पर हृदयनिहित अच्छा या बुरा काम करना चाहिए । गांडीव की गहरी टंकार से 1. जिसके हाथ सख्त पड़ गए हैं ऐसा अर्जुन क्या नाचा - गाया नहीं ? " सिद्धि चाहने वाला पुरुष स्वयं सत्त्वयुक्त और उत्साही हो फिर भी उसे अपने को अंकुश में रखकर देव की चाल के प्रति स्थिरता दिखलानी चाहिए । इन्द्र की सम्पत्ति के साथ बराबरी करने वाले वैभव से भाइयों का जिसने सत्कार किया था ऐसे धर्मपुत्र युधिष्ठिर को क्या विराट राजा के महल में लम्बे अरसे तक दुःख नहीं उठाना पड़ा ? " रूप, अभिजन से युक्त कुन्ती के दो बलवान पुत्रों को विराट द्वारा गो-पालन की नौकरी बजानी पड़ी । हुए “ जवानी के गुणों से युक्त अप्रतिम रूप वाले, अच्छे कुल में पैदा और बहुत धन की इच्छा रखने वाले मनुष्य को भाग्यवश
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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