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________________ २०६ पञ्चतन्त्र पूर्वकृत पुण्य से ही हमें कबूतर का चोला मिला था। प्रसन्न होकर वह शिकारी उस गहरे वन में घुस गया और उस दिन से प्राणियों का मारना छोड़कर वैरागी हो गया। एक दिन वन की आग देखकर निर्विकार भाव से वह उसमें घुस गया और इस तरह अपने सब पापों को जलाकर उसे स्वर्ग के सुख की प्राप्ति हुई। इसलिए मैं कहता हूँ कि “ सुना जाता है कि कबूतर ने शत्रु के शरण आनेपर उसकी पूजा की और उसे अपना मांस खाने का आमंत्रण दिया ।" ___उसकी बात सुनकर अरिमर्दन ने दीप्ताक्ष से पूछा " ऐसी हालत में तुम्हारा क्या कहना है ?" उसने कहा, " इसे नहीं मारना चाहिए। जो मुझे रोज़ तंग करती थी वह मुझे आज भेटती है। हे प्रियकारक ! तू बहुत अच्छा है जो कुछ मेरा है उसे चुरा ले। ___ चोर ने भी इसका जवाब दिया, "जो कुछ चोरी करना है उसे मैं नहीं देखता। अगर कोई चोरी करने लायक चीज़ होगी तो मैं फिर आऊंगा, यदि तेरी स्त्री तुझे आलिंगन न करे।" अरिमर्दन ने पूछा, "वह कौन चोर है और वह कौन जो आलिंगन नहीं करती? यह सब बात में विस्तार से सुनना चाहता हूं।" दीप्ताक्ष ने कहा१/बूढ़े बनिये की स्त्री और चोर की कहानी ___" किसी नगर में कामातुर नामक एक बूढ़ा बनिया रहता था। अपनी स्त्री के मरने के बाद काम से व्याकुल होकर किसी गरीब बनिये की . लड़की से काफी रकम देकर उसने शादी कर ली। अत्यंत दुखी होकर वह उस बूढ़े बनिये को देख भी नहीं सकी। ठीक ही कहा है "बालों के सिरपर सफेद हो जाने पर, वह मनुष्यों के घोर अनादर का पात्र बन जाता है। बूढ़े की दिखलाई देती हड्डियों को देखकर
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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