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________________ काकोलूकीय १८७ यह सुनकर हाथी ने कहा, " अरे खरगोश ! भगवान चन्द्रमा का संदेशा कह, उसका मैं शीघ्र पालन करूंगा ।" उसने कहा, “गत दिवस अपने झुंड के साथ यहां आकर तूने बहुत से खरगोशों को मारा है । क्या तू यह जानता नहीं कि यह मेरा परिवार है ? अगर तू जीना चाहता है तो किसी कारण से भी इस गढ़े में न आना । " हाथी ने कहा, “तेरे स्वामी भगवान् चन्द्र कहां हैं ?” उसने उत्तर दिया, "तेरे यूथ द्वारा मारे गए और अघमरे खरगोशों के आश्वासन देने के लिए वह इस गढ़े में आकर विराजमान हैं, और मुझे तेरे पास भेजा हैं ।" हाथी ने कहा, "अगर यह बात ठीक है तो मुझे अपने स्वामी के दर्शन करा, जिससे उन्हें प्रणाम करके हम दूसरी जगह चले जायं ।” खरगोश ने कहा, “अरे ! तू मेरे साथ अकेला आ, मैं उनका दर्शन करा दूंगा ।" इसके बाद रात के समय खरगोश ने उस हाथी को गढ़े के किनारे ले जाकर जल में पड़ते हुए चन्द्रबिंब को बताकर कहा, "अरे ! मेरे स्वामी जल के अन्दर समाधि में हैं, इसलिए तू शांतिपूर्वक प्रणाम करके चला जा, नहीं तो समाधिभंग होने पर उनका गुस्सा फिर से उभड़ आयगा ।" हाथी मन में डरकर उसे प्रणाम करके पीछे लौट जाने के लिए चल पड़ा । खरगोश भी उस दिन से अपने परिवार के सहित सुखपूर्वक उस जगह रहने लगे । इसलिए मैं कहता हूं कि बड़ों का नाम लेने से बड़ी सिद्धि मिलती है । चन्द्रमा का नाम लेने से खरगोश सुखपूर्वक रहते हैं ।" "छोटे न्यायाधीश के पास जाकर न्याय कराने के लिए तत्पर खरगोश और कपिंजल पूर्व समय में नष्ट हो गए ।" उन पक्षियों ने कहा, "यह कैसे ?" कौआ कहने लगा गौरय्या और खरगोश की कहानी प्राचीन काल में मैं किसी वृक्ष पर रहता था। उसके नीचे पेड़ के खोखले में कपिंजल नामक एक गौरा रहता था । सूरज डूबने के समय रोज वापस लौटने पर हम दोनों का समय सुभाषित-गोष्ठी तथा देवर्षि - महर्षि
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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