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________________ १८६ पञ्चतन्त्र नामक खरगोश राजा चन्द्रबिंब में रहता है, इसलिए किसी नकली दूत को यूथपति के पास भेजकर कहलवाओ कि चन्द्रमा तुझे इस गढ़े में आने से मना करता है,क्योंकि मेरा परिवार उसके आस-पास रहता है। ऐसी विश्वास-- योग्य बातों से शायद वह पीछे लौट जाय।" इतने में दूसरे ने कहा, "अगर ऐसी बात है तो लंबकर्ण नामक खरगोश को जो बात बनाने वाला तथा दूत के काम में होशियार है, उसे ही वहां भेजना चाहिए। कहा है कि - "स्वरूपवान्, निस्पृह , बात बनाने वाला, अनेक शास्त्रों में चतुर और दूसरों की इच्छा जानने वाले आदमी को राजदूत की तरह अच्छा मानने में आया है। और भी "मूर्ख, लालची और विशेषकर झूठ बोलने वाले को जो दूत की तरह भेजता है, उसका काम सिद्ध नहीं होता। इसलिए अगर तुम सब संकट से बचना चाहो तो ऐसे दूत को खोज निकालो।" बाद में दूसरे ने कहा , “अरे ! यह ठीक ही है। हमें जीवित रहने के लिए कोई दूसरा उपाय नहीं है। ऐसा ही करो।" । बाद में लंबकर्ण को हाथियों के यूथपति के पास भेजने का निश्चय किया गया और वह वहां गया। इसके बाद लंबकर्ण ने भी हाथी के आने वाले मार्ग में ऐसी जगह पर, जहां हाथी की पहुंच नहीं हो सकती थी, चढ़कर उससे कहा , “अरे बदमाश हाथी ! इस तरह बिना शंका के खेलता हुआ तू इस चन्द्र-हद में किसलिए आता है ? तुझे यहां आना नहीं चाहिए; पीछे लौट जा।" यह सुनकर विस्मित होकर हाथी ने कहा, “अरे! तू कौन है ?" उसने उत्तर दिया , “मैं विजयदत्त नामक खरगोश हूं और चन्द्रबिंब में रहता हूं, इसलिए भगवान चन्द्रमा ने मुझे तेरे पास दूत बनाकर भेजा है । तू जानता है कि ठीक-ठीक कहने वाले दूत का कोई दोष नहीं होता। राजाओं के मुख दूत ही हैं। कहा भी है "शस्त्र निकाल लेने पर भी', बंधुओं के मारे जाने पर भी कठोर ।" बोलने वाले दूत का भी राजा वध नहीं करता।" . ."
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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