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________________ काकोलूकीय १७५ इसलिए उसके साथ लड़ाई करनी चाहिए। यह मेरा निश्चय है । कहा है कि "निर्दय, लालची, आलसी, झूठा, दम्भी, डरपोक , अस्थिर, मूर्ख और युद्ध के प्रतिकूल दुश्मन को सुखपूर्वक उखाड़ फेंका जा सकता है। फिर उसने तो हमें हराया है । अगर आप उसके साथ मेल करते हैं तो फिर वह कौओं को मारेगा। कहा है कि ''चौथे उपाय यानी दंड से वश में करने योग्य शत्रु के प्रति साम का प्रयोग करना उलटी क्रिया है । ज्वर मेंप सीना लाना चाहिए, वहां पानी कौन छिड़कता है ? । "अच्छी तरह तपे हुए घी में पानी के छींटे देने से वह और भी तप जाता है। उसी तरह क्रोधित पुरुष के सामने साम का प्रयोग करने से वह और अधिक क्रोधित हो जाता है। फिर जब आप यह कहते हैं कि दुश्मन ताकतवर है, यह भी मेल करने का कारण नहीं है। कहा है कि “उत्साह और शक्ति-सम्पन्न छोटा शत्रु भी बड़े शत्रु को मार डालता है जैसे सिंह हाथी को मारकर अपना राज्य कायम करता है। "भीम ने स्त्री का रूप धारण करके जिस तरह कीचक को मारा था, उसी तरह जो शत्रु बल से न मारा जा सके उसे कपट से मारना चाहिए। और भी "मृत्यु की तरह उग्रदंड धारण करने वाले राजा के वश में शत्रु होते हैं । दयावान राजा को शत्रु घास-बराबर . समझते हैं । "जिसका तेज तेजस्वियों का तेज हर नहीं लेता, ऐसे केवल माता का यौवन हरने वाले मनुष्य के व्यर्थ जन्म से क्या लाभ ? "जिस लक्ष्मी का अंग शत्रुओं के रक्त से लिप्त नहीं होता वह मनोहर होने पर भी मनस्वियों के मन में प्रेम उत्पन्न नहीं करती।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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