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________________ ویم पञ्चतन्त्र टूट जाते हैं, अथवा उसके प्रयत्न का फल केवल चूहा मिलता है। "इसलिए जिससे बड़ा लाभ न मिले और केवल लड़ाई ही हो, एसा काम न तो स्वयं पैदा करना चाहिए न करना ही चाहिए। "फिर लक्ष्मी की इच्छा रखने वालों को बलवान द्वारा आक्रमण होने पर बेंत की तरह झुक जाना चाहिए , सांप के जैसा फुफकारना नहीं चाहिए। "बेंत की तरह आचरण करने वाला समृद्धिशाली होता है, पर सांप बरतने वाला मारा ही जाता है ।। "बुद्धिमान पुरुष को कछुए की तरह अपना शरीर सिकोड़कर प्रहार सहन करना चाहिए और समय आने पर काले सांप की तरह डट जाना चाहिए। "लड़ाई सामने आई देखकर साम से उसको शांत करना चाहिए। विजय अनिश्चित होने से एकाएक लड़ाई में कूद नहीं पड़ना चाहिए। "बलवान के साथ युद्ध करना, यह कोई उदाहरण नहीं है। बादल कभी उलटी हवा के सामने नहीं जाता।" ... इस तरह उज्जीवि ने मेल कराने वाले साम का विचार कहा। यह सुनकर मेघवर्ण ने संजीवि से कहा , “भद्र ! तुम्हारा अभिप्राय भी मैं सुनने का इच्छुक हूं।" उसने कहा, “देव ! शत्रु के साथ सुलह करना मुझे नहीं भाता। कहा है कि "गाढ़ी संधि के साथ भी शत्रु के साथ सुलह नहीं करनी चाहिए। अच्छी तरह से गरम पानी भी आग को बुझा देता है। और वह अरिमर्दन तो क्रूर, लालची और अधर्मी है। फिर वह आपके संधि करने योग्य नहीं है। कहा है कि "जो सचाई और धर्म से अलग हो, उसके साथ किसी तरह का मेल नहीं करना चाहिए। अगर अच्छी तरह से सुलह की भी गई हो तो वह बदमाशी से थोड़े ही समय में फिर बदल जाती है।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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