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________________ पञ्चतन्त्र मुहरें नहीं थीं। इस पर अत्यन्त दुखी होकर वह सोचने लगा, "मुझ जैसे निर्धन के जीने से क्या लाभ ? इसलिए मैं बरगद के पेड़ के ऊपर फांसी लगाकर मर जाऊंगा।" इस तरह निश्चय करके घास की रस्सी बंटकर उसकी फांस उसने अपने गले में डाल दी और पेड़ से बंधकर लटकने ही वाला था कि आकाशचारी एक पुरुष ने कहा, "अरे ! अरे ! सोमिलक ऐसा मत कर। तेरा धन ले लेने वाला मैं हूं । तेरे पास भोजन और वस्त्र से अधिक एक कौड़ी भी हो, यह मैं सहन नहीं कर सकता। इसलिए तू अपने घर जा । फिर भी मैं तेरे साहस से संतुष्ट हूं। इसलिए मेरा दर्शन तेरे लिए वृथा नहीं होगा। जैसी तेरी इच्छा हो वैसा वरदान मांग।"सोमिलक ने कहा , “अगर ऐसी बात है तो आप मुझे खूब धन दीजिए।" उसने जवाब दिया,"अरे बिना भोगे जाने वाले धन का तू क्या करेगा, क्योंकि भोजन और वस्त्र से अधिक की प्राप्ति तेरे भाग्य में नहीं है ? कहा है कि "इस लक्ष्मी से क्या किया जाय जो केवल घर की बहू की तरह है। वह मामूली वेश्या की तरह नहीं है जिसे पथिक भी भोगते हैं।" सौमिलक ने कहा , “धन भोग न सकने पर भी मुझे धन ही दीजिए। कहा है कि "जिसके पास धन इकट्ठा होता है वह मनुष्य कंजूस हो अथवा अकुलीन, फिर भी इस संसार में आश्रित उसे घेरे रहते हैं।" और भी "हे भद्रे ! लम्बे और ढीले पड़े हुए ये दोनों मांस-पिंड गिरेंगे या नहीं इस आशा में मैं पन्द्रह वर्ष देखता रहा।" पुरुष ने कहा , “यह कैसे ?" सोमिलक कहने लगा - ... बैल के पीछे-पीछे चलने वाले सियार की कथा .. - "किसी नगर में तीक्ष्णविषाण नाम का एक लम्बा-चौडा बैल रहता था। मदं की अधिकता से वह अपने झुंड को छोड़कर अपने सींगों से नदी के किनारेखोदताहुआ तथा पन्ने जैसी घास चरता हुआ वह जंगल में फिरने लगा।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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