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________________ १२६ उठता है कि अहो, दैव ही बलवान है । और भी पञ्चतन्त्र पड़ जाते "आकाश में अकेले विहार करने वाले पक्षी भी विपत्ति में हैं । मछुए अगाध पानी में रहने वाली मछलियों को समुद्र में से पकड़ते हैं । इस संसार में कौनसा बुरा काम है और कौन सा अच्छा ? अच्छा स्थान मिलने का भी क्या गुण है ? काल अपना हाथ फैलाकर दूर से ही सबको पकड़ लेता है ।" यह कहकर उसका बंधन काटने के लिए तैयार हिरण्यक को देखकर चित्रग्रीव ने कहा, "भद्र ! ऐसा मत कर। पहले मेरे सेवकों का बंधन काट उसके बाद मेरा भी ।" यह सुनकर गुस्से से हिरण्यक ने कहा, “अरे ! तूने ठीक नहीं कहा। सेवक तो स्वामी के बाद ही आते हैं ।" चित्रग्रीव ने कहा, - "भद्र ! ऐसा मत कह, ये गरीब मेरे आश्रय में रहते हैं, दूसरे अपने कुटुम्ब को छोड़कर मेरे साथ आये हैं, फिर मैं इनकी इतनी भी इज्जत क्यों न - करूं ? कहा है कि "जो राजा सेवकों की अधिक इज्जत करता है उसे गरीबी में भी देखकर सेवक उसे कभी नहीं छोड़ते । उसी प्रकार " विश्वास सम्पत्ति की जड़ है; इससे हाथी अपने झुंड का सरदार बैठता है। सिंह के पशुओं के राजा होने पर भी वे उसकी सेवा नहीं करते। फिर कहीं पाश काटते हुए तेरे दांत न टूट जायँ अथवा दुरात्मा - बहेलिया न आ पहुंचे ( मेरे नौकर नहीं छूट सकेंगे ) और मैं नरक का भागी बनूंगा । कहा है कि “सदाचारी सेवक दुःख भोगते हों और स्वामी सुख भोगे तो वह नरक में जाता है तथा इस लोक में और परलोक में दुःख पाता है ।" यह सुनकर खुश होकर हिरण्यक ने कहा, "अरे, मैं राज-धर्म जानता हूं। मैंने तो तेरी परीक्षा ली थी, इसलिए पहले मैं सब पक्षियों के बंधन
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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