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________________ मित्र-भेद १०६ इस प्रकार सोच-विचारकर बन्दर ने उससे कहा , “अरे मूर्खा ! तुझे मेरी चिंता करने की क्या पड़ी है ? कहा है कि "श्रद्धावान और विशेषकर पूछने वाले से कुछ कहना, चाहिए। अश्रद्धाल से कुछ कहना वन में रोने की तरह है।" इसलिए बहुत कहने से क्या ; उस घोंसले में रहती हुई गौरय्या को उपदेश देने के लिए वह बन्दर वृक्ष के ऊपर चढ़ गया और उसके घोंसले के सौ टुकड़े कर डाले । इसलिए मैं कहता हूं कि "ऐरे-गैरों को उपदेश नहीं देना चाहिए। देखो, मूर्ख बन्दर ने अच्छे घरवाले को बेघरवाला बना दिया। ___ मूर्ख ! तुझे मैंने शिक्षा दी है , फिर भी मेरी सीख तुझे लगेगी नहीं। पर इसमें तेरा दोष नहीं है,क्योंकि सीख सज्जनों को ही गुणकारी होती है दुर्जनों को नहीं। कहा है कि "अंधकार से भरे हुए घट में रखे हुए दीपक के समान कुपात्र को दिया हुआ पांडित्य क्या कर सकता है ? मैंने वृथा पांडित्य का आसरा लिया है । तू मेरी बात नहीं सुनता और शांत बना है। कहा भी है कि "शास्त्र को जानने वाले जात, अनुजात, अतिजात और अपजात नाम के पुत्र इस संसार में मानते हैं । जात-पुत्र में माता के समान गुण होते हैं और अनुजात में पिता के समान । अतिजात पुत्र में उनसे बढ़कर गुण होते हैं और अपजात पुत्र निकृष्ट होता है। "दूसरों को कष्ट पहुंचाकर प्रसन्न होता हुआ पाजी आदमी अपने विनाश की भी गिनती नहीं करता । लड़ाई में जब मस्तक कट जाता है तो प्रायः धड़ नाचता रहता है। "अरे! यह ठीक ही कहा है "धर्मबुद्धि और कुबुद्धि इन दोनों को मैं जानता हूं । पुत्र ने व्यर्थ __पांडित्य के परिणामस्वरूप धुंए से अपने पिता को मार डाला।" दमनक बोला, “यह कैसे ?" करटक कहने लगा
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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