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________________ १०६ पञ्चतन्त्र तू मंत्र (राजनीति)की चाल नहीं जानता । मंत्र पांच तरह के हैं - कार्य, साधन का उपाय , देश और काल का विभाग, आपत्ति का प्रतिकार और काम साधना । यहां तो स्वामी और मंत्री में से एक की कौन कहे दोनों का नाश होने वाला है। अगर कुछ जोर है तो इस दुर्घटना के रोकने की तदबीर सोच । झगड़े में सुलह कराने में ही तो मंत्री की अक्ल देखी जाती है। मूर्ख ! तू ऐसा करने में असमर्थ उलटी अक्ल वाला है । कहा है कि "शत्रु के साथ संधि करने के काम में मंत्रियों की और सन्निपात ज्वर की चिकित्सा में वैद्यों की बुद्धि की परीक्षा होती है; तन्दुरुस्ती में तो कौन अपने को पंडित साबित नहीं करता ? "दूसरे का काम बिगाड़ने के लिए ही नीच पैदा होता है । चूहे को अन्न की पेटी गिराने की ताकत तो है पर उठाने की नहीं । अथवा यह तेरा कसूर नहीं स्वामी का है, जो तेरी बात का विश्वास करता है। कहा भी है-- "नीच जनों का अनुसरण करते हुए जो राजे विद्वानों के बताये हुए रास्ते पर नहीं चलते, वे कठोर और लौटने के रास्ते के बिना, तथा सब अनर्थों के समूह रूपी पिंजरे में घुसते हैं। तू अगर पिंगलक का मंत्री होगा तो कोई दूसरा सज्जन पुरुष उसके पस नहीं आवेगा । कहा भी है "दह के मीठे पानी से भरे होने पर भी अगर उसमें दुष्ट मगर रहता है तो उसके पास कोई नहीं जाता। उसी तरह अगर राजा गुणों का घर भी हो पर उसका मंत्री दुष्ट हो तो उसके पास कोई नहीं जाता। शिष्ट मनुष्यों से अलग होकर राजा का नाश अवश्यम्भावी है। कहा भी है "जो राजे सेवकों की विचित्र और मीठी बातें सुनते हैं और धनुष का प्रयोग न करने वालों का साथ करते हैं उनके ऐश्वर्यों के साथ . शत्रु खेल करते हैं । पर मूर्ख को उपदेश देने से क्या लाभ ? उससे केवल हानि ही होती
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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