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________________ ७. भाव निक्षेप २२. निक्षेप •७६२ अन्य समयों मे नही । इसलिये ऐसा नाम साक्षात रूप से सत्य है । द्रव्य निक्षेप का विषय अनेक पर्यायों का पिण्ड द्रव्य है और इसका विषय केवल एक समय की पर्याय वाला द्रव्य है । इस कारण द्रव्य निक्षेप की अपेक्षा यह अधिक सूक्ष्म व सत्य है । उपपोग की योग्यता केवल जीव मे ही है शरीर मे नही, इसलिये इस निक्षेप मे केवल जीव पदार्थ ही ग्रहण किया जाता है शरीर नहीं। इसके भी दो भेद है-आगम भाव निक्षेप और नोआगम भाव निक्षेप । वर्तमान मे उस उस विषय सम्बन्धी शास्त्र के उपयोग में लगा हुआ जीव उस उस विषय सम्बन्धी आगम भाव निक्षेप का विषय है। और शास्त्र की अपेक्षा न कर के उसके अर्थ मे उपयुक्त जीव नोआगम भाव निक्षेप का विषय है । जैसे सामायिक शास्त्र के अध्ययन मे उपयुक्त जीव आगम भाव सामायिक है. और स्वतत्र रूप से सामायिक शास्त्र के अर्थ का विचार करने वाला जीव नोआगम भाव सामायिक है । क्योंकि साक्षात कार्य परिणत जीव ही इसका विषय है इसलिय यहा कर्म, नोकर्म, व शरीर का ग्रहण नोआगम में भी नही किया जा सकता कर्म फल का ग्रहण हो सकता है, पर वह भी जीव विपाकी का, पुद्गल विपाकी का नहीं । क्योकि जीव विपाकी का व्यापार ही जीव मे होता है, पुद्गल विपाकी का व्यापार शरीर मे होता है, जिसे उपयोग रूप नहीं कहा जा सकता। नो आगम भाव निक्षेप के दो भेद हो जाते है-उपयुक्त व तत्परिणत । शास्त्र का आश्रय लिये बिना केवल आगम के शब्दार्थ में उपयुक्त जीव को ज्ञाता कहना उपयुक्त नोआगम भाव निक्षेप है, और स्वय उसरूप परिणत हो गया हो उसको ज्ञाता कहना तपरिणत नोआगम भाव निक्षेप है । जैसे 'सामायिक इस प्रकार की जाती है' इत्यादि रूप सामायिक सम्बन्धी अर्थ का विचार करने वाला व्यक्ति सामायिक के विषय मे उपयुक्त कहलाता है और सामायिक
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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