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________________ २२. निक्षेप ७६१ ७ भाव निक्षेप अलकार सहित कन्या आदि मिश्र मंगल समझने चाहिये । यहां पर अलंकार अचित्त और कन्या सचित्त होने के कारणं अलकार सहित कन्या को मिश्र मगल कहा है। लोकोत्तर अंगलः-भी सचित्त, अचित्त और मिश्र के भेद से तीन प्रकार का है । अरहत आदि का अनादि और अनन्तस्वरूप जीवद्रव्य सचित लोकोत्तर नो आगम तट्टयतिरिक्त द्रव्य मगल हैं । यहा पर केवल ज्ञानादि मगल पर्याय युक्त अरहंत आदिक का ग्रहण नही करना चाहिये, कितु उनके सामान्य जीव द्रव्य का ही ग्रहण करना चाहिये, क्योकि वर्तमान पर्याय सहित द्रव्य का भाव निक्षेप मे अन्तर्भाव होता है । 'कृत्रिम और अकृत्रिम चेत्यालयादि अचित लोकोत्तर नोआगम तद्वयतिरिक्त द्रव्य मंगल है। उन चैत्यालयो मे स्थित प्रतिमाओ का इस निक्षेप मे ग्रहण नही करना चाहिये, क्योकि उनका स्थापना निक्षेप मे अन्तर्भाव होता है। · · · 'उक्त दोनो प्रकार के सचित्त और अचित्त मगल को मिश्रमगल कहते है ।" (गो.क ।मू व जी प्र.। ६३-७१) द्रव्य निक्षेप का कथन हो चुका अब भाव निक्षेप का स्वरूप कहते ७ भाव निक्षेप है। वही ज्ञाता जीव यदि वर्तमान मे उसके उपयोग से भी सहित हो जाए तो वही जीव भाव निक्षेप का विषय बन जाता है, क्योकि साक्षात कार्य रूप से परिणत द्रव्य को भाव कहते है । इस मे कोई भी उपचार नही है । जैसा काम करहा है वैसा नाम लेदेते है, जैसे रोगी की परीक्षा करते समय ही डाक्टर को डाक्टर कहना, या शिकार खेलते हुए ही किसी व्यक्ति को शिकारी कहना, अन्य कुछ काम करते हुए को नही । द्रव्य निक्षेप मे उस उस व्यक्ति मे कार्य करने की योग्यता मात्र या सम्भावना मात्र को देख कर ही उस उस का वह वह नाम रख देना सहन कर लिया जाता था, भले ही वह कार्य उस समय न कर रहा है। परन्तु भाव निक्षेप मे तो उस उसको वह नाम देना उसी समय सम्भव है, जब कि वह वह कार्य कर रहा हो,
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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