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________________ २१ अन्य अनेको नय ७३२ २. सर्व नयो का मल नयो मे अन्तर्भाव २२. शून्य नय - "आत्मद्रव्य शून्य नय से शून्य घर की भाति अकेला भासे है ।" कर्म व शरीरादि से निरपेक्ष शुद्ध जीव को दर्शाने के कारण यह लक्षण आगम पद्धति के 'कर्म निरपेक्ष शुध्द द्रव्यार्थिक व शुध्द संग्रह' नय मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'शुध्द निश्चय' नय में गर्भित होता है । २३ अशून्य नव "आत्मद्रव्य अशून्य नय से लोगो से भरे हुए वाहन की भाति मिलित भासे है।" कर्म व शरीर सहित जीव द्रव्य को दर्शाने के कारण, इसका अन्तर्भाव आगम पद्धति के 'कर्म सापेक्ष अशुद्ध द्र-यार्थिक' नय मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'अनुपचरित असद्भूत व्यवहार' नय मे गर्भित होता है। २४ ज्ञानज्ञेय अद्वैत नय - “आत्म द्रव्य ज्ञानजेय अद्वेत नय से वहुत बडे ईन्धन के समूह रूप से परिणत अग्नि की भाति एक है।" ज्ञान तथा जेयाकार उसकी पर्याय मे अद्वैत दर्गाने के कारण यह लक्षण आगम पद्धति के 'भेद निरपेक्ष शुध्द द्रव्यार्थिक व संग्रह'- नय मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'शुध्द निश्चय' नय मे गर्भित होता है । २५. नानज्ञे य त नय - "आत्मद्रव्य ज्ञानज्ञेय द्वैत नय से पर के प्रतिबिम्बो से संपृक्त दर्पण की भांति अनेक है।" ज्ञान मे उसकी पर्याय की अपेक्षा भद दर्शाने के कारण इसका अन्तर्भाव आगम पद्धति के 'भेद सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक' मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'असद्भुत व्यवहार' नय मे गर्भित होता है।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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