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________________ २०. विशूद्ध अध्यात्म नय ७०५ ४, सद्भूत व्यवहार नय सामान्य किया जाता है, सामान्य गुणो को नही । कारण यह है कि सामान्य गुणो पर से द्रव्य सामान्य के स्वभाव का परिचय पाया जा सकता है । परन्तु एक द्रव्य से दूसरे द्रव्य की पृथ कता नहीं दिखाई जा सकती। जैसे कि 'द्रव्य सत् है' ऐसा कहने से 'जीव होकि पुद्रगल सब ही सत् है । इनमे जाति भेद नहीं है' इस प्रकार का ग्रहण होता है । और यदि ऐसा हो जाये तो सर्व सकर दोष का प्रसग आये अर्थात सब द्रव्य मिलकर एक हो जाये, तव बन्ध व मोक्ष भी किस कहे। ____ 'सत्' या अस्तित्व द्रव्य का साधारण या सामान्य गुण हैं । अर्थात प्रत्येक द्रत्य सत् रूप तो है ही, परन्तु इसके अतिरिक्त कुछ और भी है । जैसे जीव सत् होते हुए भी ज्ञान वान जड नही या रूप रस गन्ध वाला नही, और इसी प्रकार पुद्रगल सत् होते हुए भी जड़ या रूप, रस, गन्ध वाला है ज्ञानवान नही, । इसी भाति लोकमे जाति भेद से छ. द्रव्यो की सत्ता आगम सिद्ध है-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश व काल । छहो ही सत् है । परन्तु भिन्न भिन्न स्वभाव को धरने वाले है। उनके काम भी भिन्न भिन्न जाति के है-जीव का काम जान ना है, पुद्गल का काम जीव के शरीरो का निर्माण करना है, धर्म द्रव्य का काम जीव पुद्गल को गमन करने में सहायता देना तथा अधर्म द्रव्य का काम उन्हे रुकने में सहायता देना, आकाश द्रव्य का काम सर्व द्रव्यों को रहने के लिये स्थान देना है और काल द्रव्य का काम सब द्रव्यों को परिवर्तन करने में सहायता देना है । इस प्रकार एक द्रव्य का काम दूसरे की अपेक्षा बिल्कुल भिन्च जाति का है, इसी पर से उन द्रव्यों की भिन्न जातीयता का निर्णय होता है । द्रव्य के इस प्रकार के भिन्न जातीय स्वभावों को ही असाधारण या विशेष गुण कहते हैं ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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