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________________ ___ अरे भोले व्यक्तियो ! यदि सच्चे व झूठे की परख करने की सामर्थ्य तुम्हारे मे होती तो संसार की इस गहरी दलदल में फंसे हुए क्यों छटपटाते होते ? चार्वाक, नैयायिक, वैशेषिक, साख्य, योग, कर्ममीमासा, दैवीमीमांसा, ज्ञान मीमासा, बौद्ध व जैन आदि अनेकों सम्प्रदाय है। अन्य सम्प्रदायो की तो वात ही नहीं, क्योंकि उन्हें तो एकान्तवादी की उपाधि ही प्रदान कर दी गई है, पर आश्चर्य तो जैन सम्प्रदाय के उन वर्तमान पडित व साधु त्यागी वर्ग पर आता है जो कि अपने को अनेकान्तवादी कहते हुए भी साक्षात पक्षपात की खाई मे पड़े हुए दूसरो को प्रकाश दिखाने चले है, और स्वय अन्धकार मे रहते हुए जिन्हे यह भी पता नहीं कि जिस बात को तुम अनेकान्त के नाम से प्रचार करने चले हो, वही तो एकान्त है । क्योकि यदि ऐसा न होता तो दूसरो की दृष्टि का निराकरण करने की क्या आवश्यकता थी। ___अनेको विचारक हुए और होगे। यह कोई आवश्यक नहीं कि जितना कुछ उपदेश प्राप्त हो चुका है, बस उतना ही है । प्रकाश भी अनन्त है और विश्व भी, वुद्धिये भी अनन्त है और अनुभव भी। फिर कैसे इसे शास्रो के पन्नो मे सीमित करके रखा जा सकता है, जो कि उन पत्रो को उलट-पुलट कर किसी बात की सत्यता की साक्षी लेनी पड़े। अरे प्रभो! यदि तू इस गम्भीर रहस्य को समझना चाहता है तो अनेकान्त व स्याद्वाद की शरण मे आ, जहा आकर कि तुझे जगत मे किसी भी लौकिक या पारलौकिक व्यक्ति की वात गलत प्रतीत होगी ही नहीं। जहा आकर कि वजाय दूसरे का निषेध करने के तू अपनी बुद्धि को दूसरों की दृष्टि के अनुसार बना कर उसके अभिप्राय को समझने का अभ्यास कर सकेगा। तव तेरे हृदय मे द्वेष के स्थान पर प्रेम, कटुता के स्थान पर माधुर्य, और सकुचित हृदय के स्थान पर व्यापक प्रकाश प्रगट होगा। जगत मे जो कुछ भी, जिस किसी भी, व्यक्ति या सम्प्रदाय द्वारा कहा जा चुका है. कहा जा रहा है या आगे कहा जायेगा, वह सव किसी न किसी अपेक्षा सत्य की सीमा को
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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