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________________ १८. व्यवहार, नय ६६७ ६. सद्भूत व्यवहार का लक्षण से कहते है। एक वस्तु मे यह नाम कृत अनेकता उत्पन्न करना भी योग्य नही । पर यह भेद किसी अपेक्षा वस्तु मे दिखाई अवश्य देता है इसलिये सद्भूत है।) २ प्रा. प.। १६ पृ.१३० तत्रैक वस्तुविषयः सद्भूत व्यवहारः ? (यथा वृक्ष एकैव तल्लग्ना.शिखाभिन्नाः परन्तु वृक्ष एव, , " तथा सद्भूतव्यवहारो गुणगुणिभेदकथन) (पृष्ट नोट ।)। . (अर्थ--एक वस्तु विषयक सद्भूत व्यवहार है । जैसे कि " वृक्ष एक ही वस्तु है । उसमे लगी शाखाये भिन्न-भिन्न है परन्तु सब वृक्ष ही है। इस प्रकार एक वृक्ष मे "यह वृक्ष की शाखाये" ऐसा कहना उसमे भेद डालना है । वैसे ही सद्भूत व्यवहार एक अखण्ड वस्तु मे गुण व गुणी का भेद कथन करता है।) ३ आ प । १६ । पृ. १२७ "गुणगुणिनो पर्याय पर्यायिणोः स्व भावस्वभाविनोः कारककारकिणोर्भेद. सद्भूत व्यवहार स्यार्थः।" ' (अर्थ --गुण व गुणी का, पर्याय व पर्यायी का, स्वभाव व स्वभाववान का, कारक व कारकी का भेद सद्भुत व्यवहार का विषय है।) ४ प ध । ५२५ “सद्भूतस्तङ्गण इति व्यवहारस्तत्प्रवृत्तिमात्र त्वात् ।५२५ ।"
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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