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________________ १६. निश्चय नय ५. व्यवहार नय के भेद प्रभेद मध्यस्थः। प्रान्पोति देशनाया: स एव फलमविकल शिष्यः ।। (अर्थ-व्यवहार तथा निश्चय इन दोनो नयों को जानकर जो वस्तुतः अर्थात अन्तरग अभिप्राय या लक्ष्य में मध्यस्त हो जाता है , वही शिष्य देशना का अर्थात इन नयों के उपदेश का अविकल फल प्राप्त करता है ।) यत व्यवहार नय के दो प्रमुख लक्ष्णों पर से यह बात स्वतः स्पष्ट ५ व्यवहार नय के हो जाती है कि व्यवहार नय दो प्रकार का भेद प्रभेद है-एक तो अखण्ड वस्तु मे भेद डालकर एक को अनेक भेदों रूप देखने वाला, और दूसरा अनेक वस्तुओं मे परस्पर एकत्व देखने वाला । पहिले प्रकार का व्यवहार सभ्दूत कहलाता है, क्योंकि वस्तु गुण पर्याय सचमुच ही उस वस्तु के अग हैं। दूसरे प्रकार का व्यवहार असद्भुत कहलाता है, क्योंकि अनेक वस्तुओं की एकता सिद्धान्त विरूद्ध व असत्य है। यह सद्भात व्यवहार नय भी आगे' दो भेदो मे विभाजित कर दिया गया है-शुद्ध सद्भात और अशुद्ध सद्भत । शुद्ध द्रव्य मे भेद देखने वाला शुद्ध सद्भात है और अशुद्ध द्रव्य मे भेद देखने वाला अशुद्ध सद्भात । इसी प्रकार असद्भ त व्यवहार नय भी दो प्रकार का है-उपचरित असद्भत और अनुपचरित असद्भत । संश्लेष सम्बन्ध रहित या प्रदेशों से भिन्न धन मकान अदि के साथ जीव का एकत्व करने वाला तो उपचरित असद्भा त है और संश्लेष सम्बन्ध सहित शरीर या कर्मी के साथ जीव का एकत्व करने वाला अनुपचरित असद्भूत है, क्योंकि पहिला एकत्व बहुत स्थूल उपचार है और दूसरा कुछ सूक्ष्म । इस प्रकार व्यवहार नय के भेद निन्म चार्ट पर से पढ़े जा सकते हैं।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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