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________________ १६. व्यवहार नय ४. व्यवहार नयके कारण व प्रयोजन समझाया नहीं जा सकता। या यह कह लीजिये कि गुरू व शिष्य के मध्य शब्द ही एक मात्र माध्यम या सहारा है । शब्द व्यवहार के बिना गुरू शिष्य सम्बन्ध ही हो नहीं सकता। और गुरू शिष्य सम्बन्ध के बिना लौकिक कि पार लौकिक कोई भी मार्ग की प्रवृति हो नहीं सकती। अतः शब्द व्यवहार अत्यन्त उपकारी है । शब्दो द्वारा अभद आत्म वस्तुको न जाने तो निश्चय नय का विषय किसे कहेगे । अतः शब्द व्यवहार द्वारा ही तो निश्चय के विषय में प्रवृति होनी सम्भव है । फिर शब्द व्यवहार की बिल्कुल उपेक्षा कैसे की जा सकती है ? यदि शब्द व्यवहार न हो तो निश्चय नय भी न हो, या यह कहिये कि यदि व्यवहार नय न हो तो निश्चय नय भी कोई वस्तु न रहे, क्योंकि निश्चय सीधे रूप मे शब्द गम्य नहीं व्यवहार नय का भेद रूप विषय ही शब्द गम्य है । इसी लिये व्यवहार नय को ज्ञान का साधन कहा जाता है और निश्चय नय के ज्ञान को साध्य । ज्ञान की भाति चारित्र में भी समझना । समस्त संकल्प विकल्पों का अभाव करके एक मात्र, अन्तस्तत्व मे अद्वैतता को प्राप्त उपयोग की स्थिरता ही वास्तव मे चारित्र है । पर प्राथमिक जनों के लिये क्या एकदम ऐसा किया जाना सम्भव है ? चारित्र के अनेकों प्रवृत्ति रूप भेदो अर्थात व्रत समिति गुप्ति आदि के अन्तरंग विकल्पो, तथा अनेकों निवृति रूप भेदों अर्थात उन व्रतादि मे बाधक बाह्य वस्तुओं के त्यागों, के अभ्यास के बिना कोई चाहे कि मै वह अभेद निश्चय चारित्र प्राप्त करलूसो असम्भव है । कहा जा सकता है, पर किया नहीं जा सकता । लक्ष्य मे लिया जा सकता है पर बिना अभ्यास-मार्ग के प्राप्त नही किया ज सकता । वह अभ्यास मार्ग तो आंशिक निवृत्ति रूप व आशिक प्रवृत्ति रूप है-या यों कहिये कि
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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