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________________ १६ व्यवहार नय ६४८ २. उपचार के भेद वलक्षण अर्थ १. स्वजाति मे स्वजाति पर्वाय आरोपण रूप असद्भुत व्यवहार या उपचार इस प्रकार जानो जैसे-दर्पण के प्रतिविव को देखकर यह प्रतिबिम्ब दर्पण की ही पर्याय है ऐसा कहना । यहा स्वजाति द्रव्य की पुद्रगलात्मक पर्याय मे स्वजाति प्रतिबिम्ब रूप पुगद्रलात्मक पर्याय का उपचार किया है। २ विजाति गुण मे विजाति गुण का आरोपण रूप असद्भूत व्यवहार या उपचार इस प्रकार जानो जैसे-मूर्तिमान इन्द्रियो के निमित्त से उत्पन्न होने के कारण मतिज्ञान को मूर्त कहना । तथा ऐसा तर्क उपस्थित करना कि यदि यह ज्ञात मूर्त नही है तो मूर्त द्रव्यों स बाधित क्यों हो जाता है। यहा अमूर्तिक गुण मे विजातीय मूर्तिक गुण का उपचार किया गया है। ३ स्वजाति विजाति द्रव्य में स्वाजाति विजाति गुण का आरोपण रूप असद्भूत व्यवहार या उपचार इस प्रकार जानों, जैसे जीव ब अजीव को ज्ञेय रूप से विपय करने पर ज्ञान को ही, जीव ज्ञान व अजीव ज्ञान कह देनायथा घट ज्ञान, पुत्र ज्ञान इत्यादि । यहा चेतन ज्ञान में चेतन व अचेतन रूप स्वजाति व विजाति ज्ञेयो का उपचार किया गया है, ४. स्वजाति द्रव्य मे स्वजाति विभाव पर्याय का आरोपण रूप असद्भुत व्यवहार या उपचार ऐसा जानो जैसे-परमाणु यद्यपि एक प्रदेशी है परन्तु बहु प्रदेशी स्कन्ध मे बन्धने की शक्ति रखने के कारण इसे बहु प्रदेशी कहा जाता है । यहा पुद्रगल द्रव्य रूप परमाणु मे स्वजाति पुद्गल पर्याय रूप परमाणु
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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