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________________ १४. व्यवहार नय १६. व्यवहार नय २. उपचार के भेद व लक्षण नोट---यह नव प्रकार का उपचार भी स्वजाति विजाति व मिश्रके भेद से ३ भागो में विभाजित हो जाता है जैसे: ४. आ. प । १० । पृ ८२ "असभ्दूतव्यवहारस्त्रेधा । स्वजात्यासद्भूत व्यवहारो, यथा परमाणु बहुं प्रदेशीति कथनमिव्यादी । विजात्या सद्भूत व्यवहारो,यथा मूर्त मतिज्ञायनंतो मूर्त द्रव्येण जनितम् । स्वजाति विजाति"त्यासद्भूत व्यवहारो, यथा ज्ञेये जीवे ऽजीवे ज्ञानमिति कथनम्, ज्ञानस्य विषयात् । अर्थ:-असद्भात व्यवहार नय के भी तीन भेद है-सजाति, विजाति और सजाति विजाति । जो अपने सजातीय पदार्थो मे अन्यत्र प्रसिद्ध धर्म का अन्यत्र समारोप करे उसे सजाति असद्भत व्यवहार नय कहते है । जैसे परमाणु को बहुप्रदेशी कहना, क्योकि उसमे अन्य परमाणुओं से मिलने की शक्ति है । जो विजाति पदार्थो मे अन्यत्र प्रसिद्ध धर्म को अन्यत्र समारोप करे, वह विजाति असद्भत व्यवहार नय है, जैसे मतिज्ञान को मूर्तीक कहना वयोकि वह मूर्त पदार्थो के निमित्त से होता है। जो स्वजाति व विजाति दोनों पदार्थो मे अन्यत्र प्रसिद्ध धर्म को अन्यत्र समारोपण करे वह सजाति-विजातिअ - सद्भूत व्यवहार नय है । जैसे ज्ञेय रूप जीव ओर अजीव पदार्थों के ज्ञान को घट ज्ञान, पट ज्ञानादि रूप से ज्ञान कहना, क्योकि वे ज्ञान के विषय होते है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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