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________________ - १७. निश्चय नय ६३३ १०. अशुद्ध निश्चय नय का लक्षण १० प प्र. टी । ६८ । ७१ । १० "संसारिक सुख दुःखं यद्यप्य शुद्ध निश्चय नयेन जीव जनितं तथापि शुद्ध निश्चयेन कर्म जनितं भवति ।" अर्थः-संसारिक सुख दुःब यद्यापि अशुद्ध निश्चय नय से जीव जनित हैं, क्योंकि उस समय जीव के साथ पर्याय रूप से तन्मय हैं, परन्तु शुद्ध निश्चय नय से वे कर्म जनित हैं, क्योंकि उस दृष्टि से जीव के स्वभाव में वे दीखते ही नहीं। ११. ७. द्र. म. । टी. । ३ । ११ "भावेन्द्रियादिः क्षयोपशमिक भाव प्राणाः पुन रशुद्ध निश्चयेन ।” अर्थ-भाव इन्द्रिय आदि क्षयोपशमिक भाव प्राण अनुद्ध निश्चय नय से है, क्योकि वे जीव की अशुद्ध गुण पर्याय है। १२व.. स. । टी ! ८ । २१ "भाव कर्म शब्द वाच्य रागादि विकल्प रूप चेतन कर्मणाम शुद्ध निन्चयन कती भवति ।" अर्थ:-भाव कम गब्द के वाच्य जो रागादिक विकल्प रूप चेतन के अपने विभाविक या अशुद्ध परिणाम हैं उनका कर्ता वह अनुद्ध निश्चय नय से है। १३. व.इ. सी. टी. । ९ । २३ "अशुद्ध निश्चय नयेन हर्प विपाद रूपं सुख दु.खंच भुक्ते ।” अर्थ:-अराद्ध निश्चय नये से तो जीव हर्ष विपाद रूप संसारिक सुख दुःखों का भोक्ता भी है, क्योंकि वे उसकी अपनी ही विभाविक पर्याय है।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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