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________________ १८. निश्चय नय ६२८ ६. एक देश शुद्ध नय के कारण व प्रयोजन लिये मोक्ष मार्ग इसी नय का विषय हो सकता है । साक्षात शुद्ध नय तो मुक्त जीव की शुद्धता को विषय करता है, अत उसकी अपेक्षा मोक्ष होता है मोक्ष मार्ग नही । साधक की आशिक शुद्ध पर्याय को भी यहा एक देश की अपेक्षा मोक्ष कहा गया है । क्योकि जीव के आशिक या एक देश शुद्धता को ग्रहण करता ६ एक देश शुद्ध नय के है इस लिये तो यह एक देश शुध्द नय है । __ कारण व प्रयोजन और क्योकि उस शुद्धाग से तन्मय जीव द्रव्य सामान्य को ही पूर्ण शुद्ध मानता है इस लिये निश्चय नय है । अत. “एक देश शुध्द निश्चय नय" इस का नाम सार्थक ही है । प्रयोजन क्षायिक भाव वाले शुद्ध नश्चय के समान ही समझना । साधक हर समय यह विचारता रहता है कि यह जो तेरे अन्दर मे धीमी धीमी उज्वलता दिखाई देती है, यह तेरा असली स्वरूप है । इस ही मे अधिकाधिक स्थिर रहने का प्रयन्त कर । यह जो रागादि भाव आते प्रतीत होते है वे तो इससे विपरीत स्वभाव वाले कुछ पृथक पृथक से यो ही इस उज्ज्लता के ऊपर तैरते हए इसे ढकने का निष्फल प्रयास कर रहे है । इनकी तरफ मत देख । उस उज्ज्वलता की ओर ही निरन्तर देख । तू वर्तमान मे सिद्ध है । अब और क्या शेष रहा जो तुझे चाहिये फिर चिन्ता व इच्छायें क्यों ? और इस प्रकार एक देश शुद्ध ता पर दृष्टि को स्थिर करने का अभ्यास करता हआ वर्तमान मे मोक्षका आनन्द लेने लगता है तथा आगे जा कर साक्षात रूप से उसे प्राप्त कर लता है।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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