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________________ १८. निश्चय नय ६२७ ८. एक देश शुद्ध निश्चय नय का लक्षण हुआ शुद्ध स्वर्ण, दोनो मे क्या अन्तर है ? और यदि ऐसा ही है तो उस समय गौण रूप से दीखने वाली उस अशुद्धता को किस की कहे यदि जीव मे देखने लगेगे तो उस का वह शुद्धाश दृष्टि मे न आ सकेगा । भले ही वह रागादि जीव की विभाविक पर्याय हो पर इस समय तो उसकी शुद्धता ही दिखाई दे रही है, अतः रागादि जीव के नही कहे जा सकते । तो फिर किसके कहे ? निमित्त भूत कर्मो के । सिद्धो मे तो रागादि है ही नही इस लि ये वहा तो सर्वथा यह प्रसग उत्पन्न ही नहीं होता। ३. व. द्र. स. । टी । ५५ । २२४ 'निष्पन्न योग पुरुषापेक्षया तु शुद्धोपयोग लक्षणविवक्षितैकदेश शुद्ध निश्चयो ग्राह्यः।" अर्थ-निश्पन्न योग पुरुष की अपेक्षा अर्थात ध्यान निमग्न पुरुष की अपेक्षा तो शुद्धोपयोग लक्षण, विवक्षित एक देश शुद्ध निश्चय से, वहा भी ग्रहण किया जाने योग्य है। ४ बृ. द्र. स. । टी. । ५७ । २३६ "विवक्षितैक देश शुद्ध निश्चयेन पूर्व मोक्षमार्गो व्याख्यातस्तथा पर्याय मोक्ष रूपो मोक्षोद्धपि । नय शुद्ध निश्चयेनेति ।" अर्थ.-एक देश शुद्ध निश्य नय से पहिले मोक्ष मार्ग का व्याख्यान किया है, उसी प्रकार पर्याय रूप मोक्ष भी है परन्तु शुद्ध निश्चय नय से नही है । भावार्थ -लक्ष्य की प्राप्ति हो जाने पर मार्ग नही रहा करता। जब तक लक्ष्य पर नहीं पहचता, साधक दशा मे स्थित है तभी तक मार्ग है । एक देश शुद्ध निश्चय नय साधक के शुद्धाश को विषय करता है। इस
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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