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________________ १७ पर्यायार्थिक नय ५५५ २ पर्यायार्थिक का कारण व प्रयोजन कोई भी नय वाक्य पूरे के परे द्रव्य का प्रतिनिधित्व करता २ पर्यायार्थिक का हुआ ही प्रगट हुआ करता है । नम निवाथि कारण व प्रयोजन उन वाक्यो को नयो के नाम वाले शीर्षक प्रदान किये गये है। यहा पर्यायार्थिक' ऐसे शीर्षक वाले वाक्यो का प्रकरण है । अत यहा वस्तु की पर्याय को अर्थात किसी एक विशेप को सम्पूर्ण पदार्थ के रूप में स्वीकार करने वाले वाक्यो का परिचय दिलाना अभीप्ट है । यही कारण है कि इस नय के पाच लक्षण किये गये, जिन के आधार पर यह ही दर्शाया गया है कि अभेद रूप से एक अखण्ड वस्तु का प्रतिपादन न करके, अथवा उसे गौण करके, किसी एक भेद या विशेप को ही उसका प्रतिनिधि बना कर अर्थात एक पर्याय को हो मुख्य करके पुरी वस्तु के प्रतिपादन करने की शैली को पर्यायार्थिक नय कहते है । जव एक पर्याय को ही पूरा द्रव्य कहा जायेगा तो द्रव्य ही बदलता हुआ कहा जाना अनिवार्य हो जायेगा, क्योकि पर्याय वरावर वदलती है । बदलने वाली पर्याय जव वस्तु का प्रतिनिधित्व करेगी तो वस्तु ही बदलती हुई दिखाई । इसलिये पर्यायार्थिक नय से वस्तु ध्रुव न होकर उत्पन्न ध्वसी वन बैठती है । उत्पन्न ध्वसी दीखने पर ही कार्य कारण भाव जागृत हो जाते है, क्योकि कार्य क्षणिक पर्याय को कहत है। जब पूरा द्रव्य एक पर्याय रूप ही कहा जा रहा है तो वही कार्य रहा और वही कारण । बस तो एक पर्याय को ही लक्ष्य मे लेकर कहने मे यह पाचो बाते क्योकि वस्तु मे दीख रही है, अत पाचो ही लक्षण पर्यायार्थिक के कहे जाने ठीक ही है। दूसरे इस का 'पर्यायार्थिक' ऐसा नाम भी पर्यायो रूप से द्रव्य के प्रतिपादन का संकेत करता हुआ अपनी सार्थकना स्वय दर्शा रहा है । यह इस नय का कारण हुआ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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