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________________ १७. पर्यायार्थिक नय ५५४ अर्थ – सादृश्य लक्षण सामान्य से (द्रव्य से ) भिन्न और अभिन्न रूप जो द्रव्यार्थिक नय का समस्त विपय है, ऋजुसूत्र वचन के विच्छेदरूप काल के द्वारा ( वर्तमान काल के द्वारा ) उसका विभाग करने वाला पर्यायार्थिकनय है, यह उक्त कथन का तात्पर्य जानना चाहिये । ५. लक्षण - ५ ( द्रव्य उत्पन्न ध्वंसी है) १. पर्यायार्थिक नय सामान्य का लक्षण ध | १|१३|गा ८ "उप्पजंति वियति य भावाणियमेण पज्जव णयस्स । 151" . अर्थ - - पर्यायार्थिक अर्थ - पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा पदार्थ नियम से उत्पन्न होते है और नाश को प्राप्त होते है । २६ । ६।४२०१५ पज्जवट्टियणयावलवणेण पडिसमय पुत्र पुध सम्मत्तभावे जीविददुचरिमसमओ त्ति पडिवज्जतस्य तदुवलभा । " नय के अवलम्बन से प्रत्येक समय पृथक पृथक सम्यक्त्व की उत्पत्ति होने पर जीवन के द्विचरम समय तक भी सम्यक्त्व की उत्पत्ति पाई जाती है । ३. प ध ।। २४७ ' पर्यायादेशत्वात्स्त्युत्पादो व्ययोऽस्ति च धौव्यम् । द्रव्यार्थादेशत्वान्नाप्युत्पादोव्ययोऽपि न ध्रौव्यम् ।।२४७।।” अ --पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से द्रव्य का उत्पाद भी है, व्यय भी है, और ध्रुव भी है । परन्तु द्रव्यार्थिकनय से उसका न उत्पाद है, न व्यय है और न ध्रुव है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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