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________________ १६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५११ १२. उत्पाद व्यय निरपेक्ष सत्ता ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय २ प्रा. प १७ पृ. ७१ "भेदकल्पनासापेक्षोऽशुद्धद्रव्यार्थिको, यथा मानो दर्शनज्ञानदयो गुणाः ।" अर्थ - भेद कल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय ऐसा है जैसे कि आत्मा के दर्शन ज्ञानादि गुण कहना। गुण पर्याय वाला द्रव्य है, या ज्ञानवान जीव है या ऊष्णता व प्रकाशकत्व गुणों वाली अग्नि है, ऐसा कहना इस नय के उदाहरण है। क्योंकि यह वस्तु में भेद डालकर अर्थात 'गुण वाला' ऐसा कह कर उस अभेद वस्तु का परिचय देता है, इसलिये भेद सापेक्ष है। भेद देखना ही दृष्टि की अशुद्धता है, क्योंकि कुण्डे मे दही बत् द्रव्य मे गुणों का भेद वास्तव में नहीं है, इसलिये यह नय अशुद्ध है । और सामान्य द्रव्य को दर्शाने के कारण द्रव्यार्थिक है । इसलिये 'भेद सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक' ऐसा इसका नाम सार्थक है। यह इस नय का कारण है । उस अभेद द्रव्य मे गुण पर्याय आदि का भेद डालकर, उसे उनके द्वारा प्रतिष्ठित बताना, अर्थात द्रव्य को गुण पर्याय वाला बताना इस नय का प्रयोजन है । सामान्य चतुष्टय के चारो अगो मे से प्रथम अंग जो 'द्रव्य' उस १२ उत्पाद व्यय निरपेक्ष के आश्रय पर वस्तु में गुण-गुणी आदि का सत्ता ग्राहक शुध्द अभेद व भेद, इससे पहिले वाले नय युगल द्रव्यार्थिक नय द्वारा दर्शा दिया गया । उस चतुष्टय का दूसरा अग जो 'क्षेत्र' वह स्वयं द्रव्य मे ही गर्भित हो गया, क्योकि प्रदेशात्म होकर ही द्रव्य गुणों का अधिष्ठान हो सकता है । अव उस चतुष्टय का तीसरा अग जो 'काल' उसके आश्रय पर वस्तु मे अभेद व भेद दर्शाने के लिये यह नय युगल आगे आता है। 'सत्' सामान्य का लक्षण उत्पाद व्यय ध्रौव्य से युक्त होना है । गुण-गुणी भेद वत् यहा भी यही विचारना है, कि क्या उत्पादादिक
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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