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________________ १६. द्रव्यार्थिक नय सामान्य ५०७ १०. भेद निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय को पृथक पृथक ग्रहण करके द्रव्य मे अद्वैत व द्वैत दर्शाना इन अगले तीन नय' युगलों का काम है । उनमे से प्रथम युगल द्रव्य व क्षेत्र अर्थात प्रदेशात्मक द्रव्य को विषय करता है । द्रव्य का लक्षण 'गुण पर्याय वाला द्रव्य है, ऐसा किया गया है । लक्षण के शब्दो पर से ऐसा प्रतिभास होता है, कि जैसा कि गुण व पर्याय ये दो स्वतंत्र पदार्थ है, और द्रव्य नाम का तीसरी कोई स्वतंत्र पदार्थ है । उस द्रव्य मे ये गुण व पर्याय दोनों विश्राम पाते है, जैसे कि कुण्डे मे दही। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। भले ही शब्दों में लक्षण करने के लिये उपरोक्त तीन शब्दों का प्रयोग किया गया हो, परन्तु ये तीनों कोई स्वतंत्र पदार्थ नही है, एक ही है । गुण' पर्यायों का समूह ही द्रव्य है । इन से पृथक उसकी कोई स्वतत्र सत्ता नहीं। 'गुण पर्यायो का समूह' ऐसा कहना भी ठीक नही है, क्योकि अब भी गुण व पर्याय मे भेद दृष्टि गत होता है, जो असत् है। तब वह द्रव्य क्या है ? ऐसा विचार करने पर 'पर्यायो मई ही गुण है और गुणों मई ही द्रव्य है, ऐसा कहना ही उचित जंचता है। अर्थात पर्यायों से पृथक गुण व गुण से पृथक पर्याये अथवा गुण से पृथक द्रव्य और द्रव्य से पृथक गुण नही है । सब एक रस है । पर्याय है वही गुण है, गुण है, वही द्रव्य है, द्रव्य है वही गुण व पर्याय है। फिर गुण पर्याय आदि का भेद या द्वैत कहने से भी क्या लाभ ? स्वलक्षणभूत निर्विकल्प अभेद द्रव्य है इस प्रकार सर्व ही गुणगुणी व पर्याय-पर्यायी आदि के द्वैत भावो या भेदों से निरपेक्ष एक अखण्ड द्रव्य ही सत् है, यह बताना इस नय का लक्षण है । इस नय का अन्तर्भाव पूर्वोक्त सग्रह नय मे होता है । उदाहरणार्थ अग्नि यद्यपि उष्णता व प्रकाश वाली कही जाती है, पर क्या उष्णता व प्रकाश की उससे पृथक या अग्नि की उष्णता
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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