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________________ १६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४८६ अथ - मोक्ष और बन्धका "पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षासे बन्ध, फल पुण्य पाप आदि है । परन्तु शुद्ध द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षासे सर्व जीव सदा शुद्ध है ।" ६ लक्षण न ६० ( पर संयोग का निरास ) प्र सा. ५. शुद्ध द्रव्यार्थिक नय • त प्रा२३३ " शुद्ध द्रव्यनिरूपणाया परद्रव्यसंपकीस मात . शुद्ध द्रव्य एवात्मावतिष्ठते ।" अर्थ- शुद्ध द्रव्यके निरूपणमे पर द्रव्यके सम्पर्कका असम्भव होने से आत्मा शुद्ध द्रव्य ही रहता है । स सा.मू।१४“जो पर्साद अप्पाण अबद्धपुट्ट अणण्णयं नियद । अविसेत्यदसजुत्त त सुद्धणय वियाणीहि । १४ ।” अर्थ -- जो आत्माको बन्ध राहित और परके स्पर्श से रहित, अन्यत्व रहित, चलाचलता रहित, विशेष अन्यके सयोग रहित, ऐसे पाच भावरूप अवलोकन करता है, उसे शुद्ध नय जानो । पारिणामिक भाव सम्बन्धी लक्षण न. ५ मे निम्न वाते स्पष्ट की गई है जिन को दृष्टि मे रखना अत्यन्त आवश्यक है - १. शुद्ध निश्चय नय शुद्ध द्रव्यार्थिक नय का दूसरा नाम है । २ यह नय शुद्ध पारणामिक भाव मात्र को ग्रहण करके वर्तता है । ३. पारणामिक भाव त्रिकाली शुद्ध होता है ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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