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________________ १६ द्रवयार्थिक नय सामान्य ४८५ ४ वृद्र स |५७ २३६ "नच शुद्ध निश्चयनयेनेति । यस्तु शुद्धद्रव्यशक्तिरूपः शुद्धपारिणामिकपरमभावलक्षणपरमनिश्चयमोक्ष. सच पूर्वभेव जीवे तिष्ठतीदानी भविष्यतीत्येवंन ।” ५. शुद्ध द्रव्यार्थिक नय अर्थ- शुद्ध निश्चय नय से (मोक्ष) नही है । जो शुद्ध द्रव्यकी । शक्तिरूप शुद्ध पारिणामिक परम भाव रूप परम निश्चय मोक्ष है, वह तो जीवमे पहिले ही विद्यामान है, वह परमनिश्चयमोक्ष जीवमें अब होगी ऐसा नही है । ५।१।१।६।१५ “शुद्ध निश्चयनयेन बन्ध मोक्षौ न स्त. ।” अर्थ -- शुद्ध निश्चय नय की अपेक्षा जीव को बन्ध और मोक्ष ही सम्भव नही । ६. प्र.।१।६५।७२।६ “व्यवहारेण द्रव्यबन्ध तथैवाशुद्धनिश्चयेन भाव बन्ध तथा नयद्वयेन द्रव्यभावमोक्षमपि यद्यपि जीव: करोति तथापि शुद्धपारिणामिक परमभावग्राहकेन शुद्धनिश्चययेन न करोत्येव भणति ।" अर्थ --- व्यवहारनय से ज्ञानावरणादि द्रव्य कर्म बन्ध और अशुद्ध निश्चय नयसे रागादि भावकर्म के बन्ध को तथा दोनो नयों से द्रव्यकर्म व भावकर्म की मुक्तिको यद्यपिजीव करता है, तो भी शुद्ध पारिणामिक परमभावके ग्रहण करने वाले शुद्ध निश्चय नय से नही करता है, वन्ध और मोक्ष से रहित है । ७. प ध ।३०।४५६ “अस्त्येवं पर्यायादेशाद्वन्धो मोक्षश्च तत्फलम । अथ शुद्धः नयादेशाच्छुद्ध सर्वोऽपि सर्वदा |४५६ ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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