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________________ २ शव्द व ज्ञान सम्बन्ध ३० ५. वस्तु को खंडित करके प्रतिपादन करने की पद्धति के अपने ज्ञान की कमी को दूर करते जाइये , अर्थात् उस कुछ और भी, वाले खाते में मेरी सारी बाते जमा करते जाइये । और अन्त मे जाकर उस अपने वाली बात को भी इन्ही मे मिलाकर उन सब को एक ढाचे मे जोड़ दीजिये। यह प्रयास स्वय आपको करना होगा। में तो केवल सकेत दे सकता हूँ। ____ मै भी अल्पज्ञ हू । हो सकता है कि मै उस अग की वात न वता पाऊँजो कि आपकी धारणा मे पड़ा हुआ है । अत प्रार्थना है कि जिस प्रकार में अपनी धारणा मे पडी सर्व वाते आपको बता रहा हूँ, उनको सुनने व समझने के पश्चात् , आप अपने वाली बात भी मुझको समझा दे, ताकि में भी अपने 'कुछ और भी' वाले खाते मे उसका इ दाज कर सकू । परन्तु वीच मे मेरी बातो का क्रम काट कर उसे वताने का प्रयत्न न करे। प्रतीक्षा करे, सभवत वह बात मेरे क्रम मे आ ही जाये। ____ इस सर्व कथन पर से एक सिद्धान्त निकाल कर नीचे लिख देता हूँ.-'. १. वक्ता के ज्ञान मे पडा अखंड पदार्थ २. उस पदार्थ को खडित करना . ३. प्रत्येक खड को तदनुरूप वचनो के रूप में परिवर्तित करके * श्रोता के कान तक पहुँचा देना । . . ये तीन बाते तो वक्ता के लिये है। अब तीन बाते श्रोता के लिये सुनिये जिनका क्रम ऊपर वाले क्रम से उलटा है:-- : - १ वचनों को सुन कर उनको तदनुरूप भावो मे परिवर्तित करना। २. उन सर्व खडों को पृथक पृथक हृदय कोष मे धारण करना । ३ उन खंडों को एक ढांचे के रूप मे जोड़कर उसे अखड रूप मे परिवर्तित कर देना और इस प्रकार आपके अन्दर खिचा चित्रण मेरे ज्ञान मे पड़े प्रति विम्ब के अनुरूप हो जायेगा। जो कि आगे जाकर कदाचित प्रतिबिम्ब का रूप धारण कर पाये ।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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