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________________ १६ द्रव्यार्थिक नय सामान्य ४६० २. द्रव्यार्थिक नय सामान्य के लक्षण २ -कह नही सकता (अवक्तव्य है) पर जानता हूँ। ३ -पृथक पृथक नमक मिर्च रूप नहीं है। ४ -अकेले नमक जितना नही है । विचार करने पर ये चारो वाते वास्तव में एक ही है चार नही है। न० २ का अवक्तव्यपना वास्तव में न० १ वाले अभेद स्वाद को ही दर्शा रहा है, स्वाद के अभाव को नहीं। क्योकि वह जाना जाते हुए भी कहा नहीं जा सकता, इसलिये उसे अवक्तव्य कहा गया है। सर्वथा न कहा जा सके ऐसा भी नहीं है। क्योकि यदि ऐसा होने लगे तो गुरु शिन्य सम्बन्ध निरर्थक हो जाए । अत न० ३ व ४ मे उस अवक्तव्य को जिस किसी प्रकार भी वक्तव्य बनाने का प्रयत्न किया गया है । जव "अस्ति" रूप से उसका कथन किया जाना सम्भव न देखा तो 'नास्ति' के द्वारा या 'नेति' के द्वारा कथन करने का ढग अपनाया गया। "इस अग रूप भी नही है," ऐसा कहना उन अगों का अभाव नही दर्शा रहा है बल्कि उसी न १ वाले स्वाद की विजातीयता दर्शा रहा रहा है। तथा न० ४ वाली वात उस एक विजातीय स्वाद की व्यापकता व अनेकता की ओंर सकेत कर रही है। इस प्रकार नं० २ से न० ४ न० १ वाली यह तीन वाते वास्तव मे उस वाली वात को ही विशेप स्पष्ट कर रही है, अतः यह चार भी है। ऊपर के कथन का तात्पर्य है कि यद्यपि द्रव्याथिक नय का लक्षण तो वही है जो कि पहिले दर्शा दिया गया अर्थात "विशेप को गौण करके सामान्य को ग्रहण करना द्रव्याथिक नय है" परन्तु इसी को विशेष स्पष्ट करने के लिए द्रव्याथिक नय के अनेको लक्षण किए जा सकते है, मुख्यत. ६ लक्षण' यहा करने मे आते है। और भी अनेकों लक्षणो का परिचय इस नय के भेद प्रभेदो पर से हो में जाएगा।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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