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________________ २ शब्द व ज्ञान सम्बन्ध २६ ४. शब्द की असमर्थता पदार्थ का चित्रण कागज पर किया जा सकता है पर हृदय पट पर नहीं । यहां मेरे और आपके वचन ही एक माध्यम है, वही एक वस्तु सेतु (पुल) है जिसके द्वारा कि मेरे हृदय का चित्र आपके हृदय तक पहुंच सके । समस्या बडी कठिन है। विपय अदृष्ट व अनुपम है और माध्यम है वचन जो यह काम करने का पर्याप्त साधन नहीं है। क्योकि उसकी शक्ति सीमित है । इसलिये कि एक तो वह वस्तु का प्रत्यक्ष कराने में असमर्थ है, और दूसरे इसलिये कि वह एकदम वस्तु की व्याख्या कर सके इतनी भी सामर्थ्य उसमे नही । वस्तु के टुकड़े करके उन टुकडो की आगे पीछे के क्रम से वह किचित व्याख्या करने का प्रयासमात्र कर सकता है, बस इतनी सी सामर्थ्य उसमे है । इसके अतिरिक्त एक और भी कठिनाई यहा सामने आ रही है । वह यह कि वचन दो प्रकार के होते है । एक ज्ञाता के मुख से निकलने वाले, दूसरे इस आगम के पत्रो पर लिखे हुए' । मुख से निकलने वाले, वचनो मे तो फिर भी कुछ अन्तरग के भावो की झलक दिखाई दे जाती है, कुछ वक्ता की मुखाकृति पर आने वाले हाव भाव के द्वारा, कुछ हाथो व शरीर के सकेतो के द्वारा और कुछ वचन के साथ आने वाली कर्कगता व मृदुता आदि के द्वारा परन्तु यहा लिखे वचनों मे तो उसका भी अभाव है । अत शास्त्रो के शब्दो को पढकर भावो का पढा जाना अत्यन्त कठिन है, और भावो से शून्य अर्थ या चित्रण लेखक के ज्ञान के अनुरूप न होने के कारण सच्चा नही कहा जा सकता। ___ एक और भी समस्या है । वह यह कि एक ही शब्द भिन्न-भिन्न स्थलो पर भिन्न-भिन्न अर्थो में प्रयुक्त होता है । जैसे 'दूध गर्म है' इस वाक्य मे गर्म शब्द का अर्थ स्पर्शन इन्द्रिय सबधी गर्मी है. परन्तु आप तो वहुत गर्म है' इसमे गर्म शब्द का अर्थ क्रोधी हो जाता है । यदि यहा भी पहिले जैसा ही अर्थ लगा द् तो क्या वह ठीक होगा ? पहिली गर्मी को दूर करने का उपाय उसे पानी मे रखना है, पर दूसरी गर्मी को दूर करने का उपाय शान्ति धारण करना है। यदि यहा भी पानी का
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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