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________________ १५. शब्दादि तीन नय' ४२१ ८. समभिरुढ़ नय का लक्षण १ लक्षण. १ (पर्याय वाची शब्दों में अर्थ भेद --) १. स. सि ।१।३३।५३७ "अथवा अर्थगत्यर्थः शब्द प्रयोगः । तत्रैकस्यार्थस्यैकेन गतार्थत्वात्पर्याय-शब्दप्रयोगोऽनर्थकः । शब्दभेदश्चेदस्ति अर्थभेदेनात्यवश्यं भवितव्यमिति । नानार्थसमभिरोहणत्समभिरूढः । इन्दनादिन्द्र. शकनाच्छत्र. पूदीरणात्पुरन्दर इत्येवंसर्वत्र ।" अर्थ -- अथवा अर्थ का ज्ञान कराने के लिये शब्दों का प्रयोग किया जाता है ऐसी हालत मे एक अर्थका एक शब्द से ज्ञान हो जाता है, इसलिये पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करना निष्फल है । यदि शब्दों मे भेद है तो उनमे अर्थ भेद भी अवश्य होना चाहिये । इस प्रकार नाना अर्थो का समभिरोहण करने वाला होने से समभिरूढ नय कहलाता है । जैसे इन्द्र, शक्र और पुरन्दर यह तीन भिन्न शब्दाहोने से इन के अर्थ भी भिन्न भिन्न तीन ही होते है । इन्द्र का अर्थ आज्ञा व ऐश्वर्यवान है, शक्र का अर्थ समर्थ है और पुरन्दर का अर्थ नगरों का विभाजन करने वाला है । इसी प्रकार सर्वज्ञ पर्यायवाची शब्दो के सम्बन्ध मे जानना चाहिये । (रा. वा ।१।३३।१०।६८।३०) (स त. टी पृ ३१३) २ धापु१।पृ८६।४ "नानार्थसमभिरोहणात्समभिरूढः । इन्दना दिन्द्र. पूदीरणात्पुरन्दर. शकनाच्छक इति भिन्नार्थवाचकत्वान्नैतो एकार्थवर्तिनः । न पर्याय शब्दा सन्ति भिन्नपदानामेकार्थ वृत्तिविरोधात् । नाविरोध पदानामेकत्वापत्तिरिति । नानार्थस्यभावः नानार्थता ता समभिरूढत्वात्सभिरूढः ।"
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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