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________________ १५ शब्दादि तीन नय ४२० ८ समभिरूट नय का लक्षण करने का व्यवहार प्रचलित हो जाये, तो आप ही समझ लीजिये कि क्या गडबड हो जायेगी। वक्ता कुछ और श्रोता कुछ और समझ बैठेगा । जैसे वक्ता कहेगा कि 'गाय को पानी पिला दो' और श्रोता समझेगा कि पृथिवी को पानी पिलाने के लिये कहा जा रहा है । अतबजाये गाय को पानी पिलाने के पृथिवी को पानी से गीली करके चला आयेगा और गाय बेचारी प्यासी ही मर जायेगी। इसलिये व्यवहारिक प्रयोग में निश्चित पदार्थ के लिये निश्चित शब्द ही वाचक रूप से स्वीकार करना चाहिये । भले ही उस शब्द के अनेको अर्थ होते हो, परन्तु सबको छोडकर उस शब्द का एक लोक प्रसिद्ध अर्थ ही ग्रहण करना समभिरूढ नय का काम है, जैसे 'गो' शब्द का प्रयोग गाय नाम के पशु के लिये ही होता है, पृथिवी या वाणी के लिये नही । इस प्रकार समभिरूढ नय के हम निम्र तीन लक्षण कर सकते है । १. पर्यायवाची शब्दो मे निरूक्ति या व्यत्पत्ति से अर्थ भेद करना। रूढिवश अनेक पर्याय वाची शब्दो का वाच्य एक पदार्थ को मानना । ३. एक शब्द के अनेक अर्थोछोडकर एक प्रसिद्ध अर्थ ही ग्रहण करना । अब इन्ही लक्षणों की पुष्टि व अभ्यास के लिये कुछ आगम कथित उद्धरण देखिये।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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