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________________ १५ शब्दादि तीन नय ४०२ ६. शब्द नय का लक्षण जैसा कि पहिले परिचय देते हुए तथा व्यञ्जन नों की उत्तरोत्तर ६. शब्द नय सूक्ष्मता दर्शाते हुए भलीभाति बता दिया गया है, का लक्षण व्यञ्जन नयो का व्यापार शब्द के अर्थ मे अथवा उसका ठीक प्रकार प्रयोग करने में होता है, ताकि श्रोता को किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न न होने पावे । व्यञ्जन नय शब्द को सूक्ष्म दृष्टि से देखता हुआ उसे वाच्य के अधिकाधिक अनुरूप बनाने का प्रयत्न करता है। व्याकरण सम्वन्धी अनेको दोपो की अपेक्षा रखता हुआ बड़ी सावधानी से शब्द प्रयोग की रीति बताता है । एक मात्रा के हेर फेर से शब्द के वाच्यार्थ मे वहुत अन्तर पड़ जाता है । उसी को दर्शाना इन नयों का काम है। इन मे से यह पहिला शब्द नय अत्यन्त स्थूल है । यद्यपि ऋजुसूत्र की अपेक्षा सूक्ष्म है परन्तु व्यञ्जन नयो की अपेक्षा सब से स्थूल है। ऋजुसूत्र नय के प्रतिपादन में अनेकों शब्द गम्य दोष दिखाई देते है, कारण कि वह लौकिक व्याकरण के नियम रूप व्यवहार का अनुसरण करता है । व्याकरण यद्यपि साधारण घरेलु वाल भाषा को बहुत अंश मे निर्दोश बना देता है, परन्तु शव्द गम्य सूक्ष्म दोष उसकी स्थूल दृष्टि मे दिखाई नहीं देते । जीवन के सूक्ष्म विकल्पो का निरीक्षण करने वाले वीतरागी जन ही उन को स्पर्श कर पाये है। व्याकरण मे भी यद्यपि शब्द व्यवहार की शुद्धता का विचार रखते हुए अनेकों नियम बनाये गये । विरोधी लिग व सख्या आदि के वाचक शब्दो का परस्पर मे सम्मेल रूप व्याभिचार यद्यपि उसकी दृष्टि में भी अखरता है, और इसी लिये वह भी समान लिग व समान संख्या आदि वाचक शब्दो का ही प्रयोग युक्त मानता है, परतु लौकिक व्यवहार का सर्वथा लोप होन के भय से अपने नियमो मे यत्र तत्र अनेकों अपवाद स्वीकार करके उनको सहर्ष कलकित कर लेता है । परन्तु वीतराग वाणी को क्यवहार लोप का भय क्यो हो ?
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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