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________________ १५ - शब्दादि तीन नय ३६४ ५. व्यभिचार का अर्थ २. एक वस्तु की ओर सकेत करने वाला शब्द एक वचनान्त कहलाता है और इसी प्रकार को वस्तुओ कि और संकेत देने वाला द्विवचनान्त तथा बहुत सी वस्तुओ की ओर सकेत देने वाला बहुवचनान्त कहलाता है । जैसे नक्षत्र शब्द एक वचनान्त है, पुनर्वसू शब्द द्विवचनान्त है और शतभिषज शब्द बहुवचनान्त है । यद्यपि हिंदी व्याकरण मे एकवचनान्त व बहुवचनान्त यह दो रूप ही समझे जाते है, परन्तु सस्कृत व्याकरण मे उपरोक्त तीनो वचन स्वीकार किये गये है । इस कथन पर से शब्द के वचन या सख्या का परिचय दिया गया । ३. वीती हुई अवस्था का वाचक शब्द भूत काल वाचक, वर्तमान अवस्था का वाचक शब्द वर्तमान वाचक, और भविष्यत काल की अवस्था का वाचक शब्द भाविकाल वाचक कहा जाता है-जैसे 'विश्वदृशा' जिसने विश्व देख लिया है यह शब्द भूत काल वाचक है, 'सर्वज्ञ' शब्द वर्तमान काल वाचक है, 'भाविसर्वज्ञ' जो आगे जाकर सर्वज्ञ होगा ऐसा शब्द भविष्यत काल वाचक है । हिन्दी व सस्कृत दोनो ही व्याकरणो मे यह तीन काल स्वीकार किये गये है। इस कथन पर से शन्द के काल का परिचय दिया गया। ४. जो काम करे सो कर्ता, जो कुछ काम किया जाये वह कर्म, जिस के द्वारा किया जाये वह करण जिसके लिये किया जाये वह सम्प्रदान, जिस से पृथक करके किया जाये सो अपादान और जिस वस्तु के आधार पर किया जाये सो अधिकरण कारक है। जैसे 'सुनार ने तिजोरी मे से स्वर्ण निकाल कर हथौड़े आदि के द्वारा अपने ग्राहक के लिये जेवर वनाया' इस वाक्य मे सुनार कर्ता कारक है, ज़ेवर कर्म कारक है, हथौडा आदिकरण' कारक है, ग्राहक सम्प्रदान कारक है, तिजोरी अपादान कारक है और सुवर्ण अधिकरण कारक है । हिन्दी तथा सस्कृत दोनो मे ही इन छकारको का प्रयोग किया जाता है। अन्तर केवल इतना है कि
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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