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________________ १५ शब्दादि तीन नय ३८८ ३. तीनो में उत्तरोत्तर सूक्मता अर्थ- जैसे "आप कहा रहते है" ऐसा पूछने पर इन नयों का उत्तर यही होता है कि "अपनी आत्मा मे ही रहता हूँ" क्योकि एक वस्तु का दूसरी वस्तु मे वर्तन करने का अभाव है।) ६. रा. वा ।५।१२ १५४४५४ एवभुत नयादेशात् मर्च द्रव्याणि परमार्थतयाऽऽत्मप्रतिप्ठितानि । इति आधाराधेयाभावात् कुतोऽनवस्था ?" अर्थ -एवभूत नय की अपेक्षा सर्व द्रव्य परमार्थ से अपने स्वरूप मे ही रहते है अन्य मे नही । (इस प्रकार आधार आधेय भाव का अभाव होने के कारण अन्वस्था उत्पन्न नहीं को जा सकती। ७. रा. वा. १।१।२४१८, 'नेमौ ज्ञानदर्शनशब्दो करण साधनौ। कि तहि ? कर्तृ साधनौ । · कथम् ? एवम्भूतनयवशात् ।" अर्थ- इन ज्ञान व दर्शन शब्दो म करण साधन पना नही है । अर्थात् कार्य कारणपना नही है । परन्तु कर्तृ साधनापना है । अर्थात दोनो स्वतत्र रूप से अपने अपने कर्ता आप है । ए वभूत नय का ऐसा आदेश है । जहा एक समय व एक पर्याय मात्र को ही स्वतंत्र सत रूपेण विपय किया गया हो.उनके अतिरिक्त जहा कोई दूसरा द्रव्य, गुण कि पर्याय दिखाई ही न देता हो, वहा कार्य कारण आदि भावों का द्वैत उत्पन्न किया ही कैसे जा सकता है ? जैसा कि पहिले भी सातो नयो की उत्तरोत्तर सूक्ष्मता दर्शाते ३. तीनो में उत्तरोत्तर हुए बता दिया गया है यह तीनो नये सूक्ष्मता पहिली पहिली की अपेक्षा से अधिक अधिक सूक्ष्म है । इनमे ऋजुसूत्र के विपयभूत अर्थ के वाचक शब्दो
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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