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________________ १५. शब्दादि तीन नय ३८३ १ व्यञ्जन नय सामान्य परिचय द्रव्याथिक नय और विशेष ग्राही पर्यायाथिक नय। तहा द्रव्याथिक के अद्वैत व द्वैत भाव को ग्रहण करके संग्रह व व्यवहार नयो के नाम से उस का कथन कर दिया गया । पर्यायाथिक नय का कथन ऋजुसूत्र के नाम से किया गया । अब तीसरा जो शब्द नय उसके कथन का अवसर प्राप्त होता है। ___ यद्यपि शब्द नय का विषय पूर्व कथित अर्थ नयो से कोई भिन्न ही जाति का है, परन्तु इसका विषय जो शब्द, वह स्वय एक व्यञ्जन पर्याय है द्रव्य नही, अतः इस नय को कदाचित पर्याथिक भी कह दिया जाता है। परन्तु पर्यायाथिक कहने का ऐसा अर्थ न समझ लेना कि यह नय किसी पदार्थ के विशेषांश को ग्रहण करके वर्तन करता होगा, क्योंकि पदार्थ के अन्तिम अश का ग्रहण ऋजुसूत्र नय के द्वारा हो जाने के पश्चात अव उसमे कोई अवान्तर अश शेष रह नहीं जाता, जिसको कि शब्द नय का विषय बनाया जा सके। शब्द नय का व्यापार केवल बोले जाने वाले अथवा लिखे जाने वाले शब्द मे होता है । किस शब्द मे होता है । किस शब्द का प्रयोग किस स्थल पर किस रीति से किया जाना योग्य है, कौन शब्द किस अर्थ का द्योतक है, और किस समय किस पदार्थ को ठीक ठीक क्या नाम दिया जाना चाहिये, जिससे कि श्रोता या पाठक को कोई भी भ्रम उत्पन्न होने न पावे । इस प्रकार शब्द गत उत्तरोत्तर सूक्ष्मता को विषय करने वाले नय को शब्द नय कहते है। इस शब्द नय के तीन भेद है, जो उत्तरोत्तर एक दूसरे की अपेक्षा सूक्ष्मता का प्रतिपादन करने वाले है-शब्द नय, समभिरूढ नय और एवंभूत नय । इन तीनों में परस्पर सूक्ष्मता का कथन तो आगे करेगे, यहां तो केवल इतना ही बताना इप्ट है कि इन्हे
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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