SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७६ करते हैं । शुद्ध अद्वैत में द्वैत रहते अवश्य हैं पर उनको गौण कर दिया जाता है, जब कि शुद्ध एकत्व मे द्वैत रहता ही नही । सामान्य में विशेष रहते है पर विशेष मे अन्य विशेष नही । दोनों ही नय शुद्ध तत्व का निरूपण करते है परन्तु संग्रह उसके शुद्ध सामान्य ग्राही छोर पर बैठा है और ऋजुसूत्र उस ही तत्व के शुद्ध विशेष ग्राही छोर पर बैठा है । १४ ऋजु सूत्र नय ५. ऋजु सूत्र नय सम्वन्धी शकायें ८ शंका - पर्याय द्रव्य से अभिन्न ही रहती है अर्थात सामान्य से रहित विशेष कोई वस्तु नही । फिर पृथक पृथक पर्यायों को स्वतंत्र सत्ता रूप से ऋजुसूत्र नय का विषय कैसे बनाया जा सकता है ? उत्तर - यहा पृथक सत्ता का अर्थ द्रव्य निर्पेक्ष सत्ता नही है, परन्तु द्रव्य गौण सत्ता है । पर्याय से निर्पेक्ष द्रव्य और द्रव्य से निर्पेक्ष पर्याय का ग्रहण नय नही है | नैगम नय के अनेकों द्वैत रूप भेद है । उनको एकान्त रूप से मानने वाले न्याय वैशेषिको का नैगमाभास मे अन्तर्भाव होता है । विशेषो की अपेक्षा न करके अर्थात गौण करके वस्तु के सामान्य रूप से जानने को संग्रह नय कहते है, जैसे जीव कहने से त्रस स्थावर आदि सव प्रकार के जीवो का ज्ञान होता है । संग्रह नय पर संग्रह और अपरसंग्रह के भेद से दो प्रकार की है । सत्ता द्वैत को मानकुर सम्पूर्ण विशेषो के निषेध करने को संग्रहाभास कहते है | अद्वैत वेदान्तियो संग्रहाभास मे अन्तर्भाव होता है । ओर साख्यों का सग्रह नय से जाने हुए पदार्थों के योग्य रीति से विभाग करने को व्यवहार नय कहते है। जैसे जो 'सत्' है वही द्रव्य
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy