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________________ १४. ऋजु सूत्र नय . ३७६ . ५. ऋजु मूत्र नय सम्बन्धी कार्य --- ... --~-- है, इसलिये इन्हे अन्तिम स्थल विशेष स्वीकार कर लिया गया है। ___ ऋजुसूत्रनय के दो भेद है. सूक्ष्म व स्थूल । तहा सूक्ष्म ऋजुसूत्र की..अपेक्षा तो इन्हे.. निविशेष कभी भी कहा नहीं जा सकता, क्योकि उसका विषय केवल एक प्रदेशी व एक समय स्थायी. परमाणु की सूक्ष्म अर्थ पर्याय है । प्रन्तु स्थूल ऋजुसूत्र का विषय बनने मे इस के लिये कोई विरोध नहीं आता। यह अनेकान्त की ही कोई अचिन्त्य महिमा है, कि तनिक से दृष्टि के फेर से विरोध भी अविरोध हो जाता. है। ४. शंका -"यदि ऐसा भी पर्यायाथिक नय है तो .' “उप्पजति वियंतिं यं भावाणियमेण पञ्जवणयस्स । . :- दव्वट्ठियस्य सव्व सदा अणुप्पण्णगंभविणटुं ।।९४ ॥" (अर्थ-जो भाव नियम से उत्पन्न होते व विनशते रहते है वे पर्यायाथिक नय के विपय है और जो सर्वथा व सदा अनुत्पन्न व अविनष्ट रहते है वे द्रव्याथिक नय के * " विषय है।) __..."इस सन्मति सूत्र के साथ विरोध होगा" .: . , . (अर्थात यदि उत्पन्न ध्वसिः ही भाव नियम से ....पर्यायाथिक का विषय है तो छ. मास या सख्यात वर्ष तक टिकने वाले भावाऋजुसूत्र का विषय न बन सकेगे।) उत्तर:-" (विरोध), नही होगा, क्योंकि अशद्ध ऋजुसूत्र के द्वारा , व्यञ्जन पर्याय ही विषय की जाती है और शेष (अर्थ)
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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