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________________ ; ३७५ ५. ऋजु सूत्र नय सम्बन्धी कार्ये अद्वैत सामान्य मे विशेष दर्शक द्वैत करने वाला द्रव्यार्थिक नय है । १४ ऋजु सूत्र नय परन्तु विशेष में अन्य नही रहता, अत वहा न द्वैत दर्शाना सम्भव है और न अद्वैत । जितना कुछ वह उस समय दिखाई देता है वही सत् है । उसे विशेष भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि विशेष कहना सामान्य की अपेक्षा रखता है । जहा सामान्य दिखाई ही नही देता, वहां उसे विशेष भी कैसे कहा जा सकता है ? बस उतना मात्र ही एकत्वगत तत्व सत् है, ऐसा ग्रहण करना पर्यायार्थिक नय का विषय है । ३. शंका - यदि निर्विशेष एक विशेष प्रमाण ही सत को स्वीकार करना पर्यायार्थिक या ऋजुसूत्र नय का विषय है, तो मनुष्यादि स्थूल व्यञ्जन पर्याये इस के विषय नही बन सकते, क्योकि वे निविशेष नहीं है, बल्कि क क्षेत्रात्मक अवयवों व कालात्म अनेकों बालक आदि पर्यायो मे अनुगत होने के कारण वे तो सामान्य तत्व है । उत्तर - यह कहना सत्य है परन्तु जैसा कि स्थूल ऋजुसूत्र नय का लक्षण करते हुआ बता दिया है, लौकिक व्यवहार में स्थूल दृष्टि से देखने पर उस मे एकत्व ही दिखाई देता है, क्योंकि जन्म से मरण पर्यन्त वह मनुष्य वह का वह ही देखा जाता है । सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर अवश्य उसमे अनेक क्षेत्रात्मक विशेष या प्रदेश और कालात्मक विशेष या अर्थ पर्याय देखी जाती है, परन्तु वे सब विशेष स्थूल दृष्टि के विषय नही । जीव सामान्य के भेद प्रभेद करते हुए स्थूल दृष्टि इन व्यञ्जन पर्यायों पर आकर रुक जाती
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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